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Friday, July 24, 2020

गौतम बुद्ध -Gautama Buddha

 गौतम बुद्ध का जीवन परिचय
 Biography of Gautama Buddha
 

Gautama Buddha, enlightenment

गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईसवी पूर्व में कपिलवस्तु के लुंबिनी नामक स्थान पर हुआ था।

 इनके पिता का नाम शुद्धोधन था जो कपिलवस्तु के शाक्य गण के शासक थे।
 इनकी माता का नाम महामाया था। गौतम बुद्ध के जन्म के 7 दिन पश्चात उनके माता का निधन और हो जाता है तत्पश्चात इनका पालन-पोषण इनकी मौसी महा प्रजापति गौतमी करती है।
कहा जाता हैं कि सिद्धार्थ के जन्म का समाचार सुनकर आसित नामक एक वृद्ध संन्यासी राज महल गए शिशु को देखकर उन्होंने भविष्यवाणी की कि "यह बालक आगे चलकर एक महात्मा होगा और एक नए धर्म की स्थापना करेगा।"

 इनके नामकरण समारोह में इनके पिता शुद्धोधन ने ब्राह्मणों को आमंत्रित किया सभी ब्राह्मणों ने बच्चे की भविष्यवाणी बताते हुए यह कहा कि "यह बच्चा भविष्य में एक महान राजा था एक महान आदमी बनेगा।"

 सिद्धार्थ का मन बचपन से ही करुणा और दया से भरा हुआ था इस बात का ज्ञान हमें उनके प्रारंभिक जीवन की अनेक घटनाओं से होता है।जैसे जब वह घुड़दौड़ करते तब यदि घोड़े के मुंह से झाग निकलने लगता तब सिद्धार्थ यह समझते कि जानवर थक गया है और वह वहीं पर ही अपना रथ रोक देते जिससे वे जीती बाजी हार जाते।

गौतम बुद्ध (सिद्धार्थ) को किसी को हराना और किसी को दुख पहुंचाना अच्छा नहीं लगता था।उनसे दूसरों का दुख देखा नहीं जाता था।इसी कारण उन्होंने अपने चचेरे भाई देवदत्त द्वारा तीर से घायल के गए हंस की सहायता की और उसके प्राणों की रक्षा की। 


गौतम बुद्ध(सिद्धार्थ) की प्रारम्भिक शिक्षा

 सिद्धार्थ को उनके पिता शुद्धोधन ने गुरु विश्वामित्र के पास वेद और उपनिषद की शिक्षा लेने के लिए भेजा वहां पर उन्होंने राजकाज और युद्ध विद्या की भी शिक्षा ली। इसके अलावा उन्हें कुश्ती घुड़दौड़ और तीर कमान का भी ज्ञान हुआ।


गौतम बुद्ध(सिद्धार्थ) का विवाह


  सिद्धार्थ जब 16 वर्ष के थे तभी इनका विवाह यशोधरा नाम की एक कन्या के साथ हुआ। विवाह उपरांत ग्रीष्म वर्षा एवं शरद ऋतु में अलग-अलग आलीशान महलों में उनके रहने की व्यवस्था की गई। वह बहुत ही आनंद से ग्रस्त जीवन बिताने लगे। उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई जिसका नाम राहुल रखा गया।


गौतम बुद्ध(सिद्धार्थ) के मन में विरक्ति की भावना कैसे आई?


 भोग-विलासिता का जीवन यापन करते हुए भी गौतम बुद्ध के अंतर मन को सुख और संतोष नहीं हुआ।वे कुछ और ही चाहते थे।एक दिन वे रथ में बैठकर नगर की यात्रा करने निकले मार्ग में उन्होंने एक बूढ़े आदमी को पहली बार देखा जिसकी कमर झुकी हुई थी और वह एक छड़ी के सहारे लुढ़कते जा रहा था। 

सिद्धार्थ ने अपने रथ के कोचवान चेन्ना से इसके बारे में पूछा, "यह कैसा आदमी है? यह कैसे चल रहा है?" 
चेन्ना ने कहा," यह एक बूढ़ा आदमी है।यही जीवन की प्रक्रिया है। सभी बूढ़े होते हैं।यह सुनकर उनके मन में बड़ी दया आयी। साथ ही वे चिंता में पड़ गए। 

एक अन्य दिन भ्रमण के समय गौतम बुद्ध (सिद्धार्थ) को रास्ते में एक अत्यंत रोग ग्रस्त व्यक्ति दिखाई दिया।कुछ दिनों पश्चात उन्होंने भ्रमण करते समय फिर एक नया दृश्य देखा इस बार उन्होंने देखा कि कुछ लोग "राम नाम सत्य है" कहते हुए एक शव लेकर जा रहे हैं। सिद्धार्थ ने अपने जीवन में ना तो कभी भी किसी की मृत्यु होते देखा, ना ही रोग ग्रस्त व्यक्ति देखा,इसलिए इन सब चीजों को देखने के बाद में मैं चिंता मग्न हो उठे।

 उपर्युक्त तीनों घटनाओं से उनके मस्तिष्क पर प्रबल आघात पहुंचा। वह सोच में पड़ गए और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि मानव जीवन दुख-दर्द से भरा हुआ है इससे उबरने का मार्ग ढूंढना चाहिए।

एक दिन सिद्धार्थ गेरुआ वेशधारी सन्यासी के पास गए। यह पूछने पर कि उन्होंने संन्यास क्यों लिया इसका प्रयोजन क्या है, उन्होंने बताया कि दुख में जीवन से छुटकारा प्राप्त करने के लक्ष्य से ही उन्होंने सन्यास ग्रहण किया है।

 गौतम बुद्ध के गृह त्याग की घटना क्या कहलाई?

सिद्धार्थ के मन में लगातार यह चिंता हो रही थी कि किस प्रकार इस दुख में जीवन से मुक्ति प्राप्त की जाए। उस समय उनकी उम्र मात्र 29 वर्ष की थी।

 एक दिन मध्यरात्रि में जब राज महल के सभी लोग गहरी नींद में थे उन्होंने अपने कोठवान को अपने प्रिय घोड़े "कंथक" को तैयार कर रखने के लिए आदेश दिया और वे अपने धर्म पत्नी यशोधरा के कक्ष में गए जहां वह गहरी नींद में थी।  

उन्होंने अपनी पत्नी और अपने नवजात शिशु पर दृष्टि डालकर व उन्हें सोता हुआ छोड़कर महल से बाहर निकल गए और अपने घोड़े पर सवार होकर जंगल की ओर चल पड़े।

उनकी गृह त्याग की यह घटना महाभिनिष्क्रमण कहलाती है।

जब गौतम बुद्ध(सिद्धार्थ)अपने पिता के राज्य से बाहर पहुंचे तो अपना राजसी वस्त्र उतार कर चन्ना को दे दिए। अपने बाल काट लिए और पीले वस्त्र धारण कर मानव जीवन में आनंद की खोज में निकल पड़े। 

मार्ग में कई साधु सन्यासियों से मिले किंतु उनसे उनको संतोष ना हुआ। धीरे-धीरे वह गया के निकट उरुवेला नामक स्थान पर पहुंचे। यहां पर उन्होंने 6 वर्षों तक अनवरत कठिन तपस्या की जिससे उनका शरीर सूखकर अस्थि पंजर मात्र रह गया था। किंतु उनको सच की प्राप्ति ना हुई जिसकी उनको खोज थी।
 सिद्धार्थ ने यह अनुभव किया कि मात्र व्रत और उपवास से ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती। उन्होंने अब भोजन ग्रहण करना शुरू कर दिया और पुनः सामान्य जीवन बिताना प्रारंभ किया। 

गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति कैसे हुई? 


Gautama Buddha, enlightenment


बुद्ध के प्रथम गुरु आलार कलाम थे,जिनसे 
उन्होंनेे संन्यास काल में शिक्षा प्राप्त की ।
३५ वर्ष की आयु में वैशाखी पूर्णिमा के दिन जब सिद्धार्थ रात्रि में निरंजना नदी के किनारे एक पीपल के वृक्ष के नीचे गंभीर ध्यान में मग्न थे, उन्होंने एक आदित्य शांति का अनुभव किया।उन्हें अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया था। उन्हें बोध हो गया था। 
इसी बोध (ज्ञान) के पश्चात उन्हें बुद्ध के नाम से संबोधित किया जाने लगा। और जिस जगह पर उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ वह स्थान बोधगया कहलाया।


धर्मचक्रप्रवर्तन क्या है?

Gautama Buddha

गौतम बुद्ध  इस ज्ञान को और लोगों तक पहुंचाने के लिए निकल पड़े। सबसे पहले वे वाराणसी के पास सारनाथ( ऋषि पत्तनम) नामक स्थान पर पहुंचे और वहां पर उन्होंने 5 लोगों को शिक्षा दी,जिसे बौद्ध ग्रंथों में धर्मचक्रवर्तन कहा गया है।


इसी प्रकार महात्मा बुद्ध 80 वर्ष की उम्र तक अपने धर्म का संस्कृत के बजाय उस समय की सीधी सरल लोकभाषा पाली में प्रचार करते रहे। महात्मा गौतम बुद्ध ने ही बौद्ध धर्म की स्थापना की।
 बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांत एवं उपदेश सीधे व सरल थे इसलिए इसकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ने लगी।  अपने अनुयायियों को महात्मा बुद्ध ने धर्म का प्रचार करने के लिए कहा। उन्होंने बौद्ध संघ तथा बौद्ध विहारों की स्थापना की।
 महाप्रजापती गौतमी (बुद्ध की विमाता)को सर्वप्रथम बौद्ध संघ मे प्रवेश मिला।आनंद,बुद्ध का प्रिय शिष्य था। बुद्ध आनंद को ही संबोधित करके अपने उपदेश देते थे।

महापरिनिर्वाण 


Gautama Buddha

पालि भाषा के महापरिनिर्वाण सूत्र के अनुसार 80 वर्ष की आयु में गौतम बुद्ध ने घोषणा की कि वे जल्द ही परिनिर्वाण करेंगे।

 गौतम बुद्ध ने अपना अंतिम भोजन कुंडा नामक एक लोहार से भेंट स्वरूप प्राप्त किया था। इस भोजन को ग्रहण करने के पश्चात गौतम बुद्ध गंभीर रूप से बीमार पड़ गए। 

गौतम बुद्ध  की मृत्यु 80 वर्ष की आयु में 483 ईसा पूर्व कुशीनगर में हुई।

अंतिम संदेश में गौतम बुद्ध ने अपने शिष्यों से कहा, "ऐसा जीवन जियो मानो प्रकाश तुम्हारे अंतःकरण में है इससे भिन्न कोई प्रकाश नहीं है।"

 बौद्ध धर्म प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व एक भारत में ही  नहीं अपितु मध्य एशिया तथा दक्षिण पूर्व एशिया के अनेक देशों में फैल गया था।
समय के साथ इसके क्षेत्र के विस्तार में कमी आई है। किंतु मानव जाति में सद्भाव से शांति समृद्धि और शांति के पश्चात बुद्ध के बताए हुए मार्ग का पालन अनिवार्य है।

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