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Monday, September 21, 2020

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मानव शरीर में - सात शरीर सात चक्र (In Human Body- Seven bodies seven Chakra)

 मानव शरीर में - सात शरीर सात चक्र (In Human Body- Seven bodies seven Chakra)


 

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Seven Chakra in Human body


मनुष्य के भीतर बाधाएं भी हैं और रास्ते भी। शरीर के भीतर ही समाहित जीवन के साथ चक्रों को समझ कर अपनी बाधाओं को समझ लेना कोई कठिन काम नहीं है। इसके लिए जरूरी है शरीर के सात चक्र के महत्व को जानना।

 मनुष्य के पास 7 शरीर होते हैं और सात चक्र भी प्रत्येक चक्र मनुष्य के एक शरीर से विशेष रूप से जुड़ा हुआ है।इस लेख में  हम इसी विषय पर जानकारी प्रदान करेंगे ।

भौतिक शरीर

 पहला शरीर है भौतिक शरीर और पहला चक्र है मूलाधार। जिन लोगों के जीवन में भोग, संभोग, अनिद्रा की प्रधानता होती है उनकी ऊर्जा इसी चक्र के आस पास रहती है। मनुष्य तब तक पशु के समान है, जब तक कि वह केवल जी रहा है। इसीलिए भूख, निद्रा और संभोग पर संयम रखते हुए इस चक्र पर ध्यान लगाने से यह चक्र जागृत होने लगता है। इस चक्र के जागने पर व्यक्ति में वीरता, निर्भीकता और आनंद का भाव जागृत हो जाता है।

आकाश शरीर

 दूसरा है आकाश शरीर। यह शरीर हमारे दूसरे चक्र स्वाधिष्ठान चक्र से संबंधित है।अगर ऊर्जा इस चक्र पर ही एकत्रित है जो जीवन में आमोद,प्रमोद,मनोरंजन और मौज मस्ती की प्रधानता रहेगी। यह सब करते हुए ही जीवन व्यतीत हो जाएगा। जीवन मनोरंजन प्रधान रहेगा। लेकिन मनोरंजन भी व्यक्ति की चेतना को बेहोशी में धकेलता है। इस चक्र के जाग्रत होने पर क्रूरता, आलस्य, प्रमाद, अवज्ञा, विश्वास आदि दुर्गुणों का नाश होता है और सिद्धियां प्राप्त होती हैं।



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सूक्ष्म शरीर

 तीसरा, सूक्ष्म शरीर होता है जो मणिपुर चक्र से संबंधित है। यह चक्र जिस व्यक्ति की चेतना या ऊर्जा को समेटे रहता है उसे काम करने की धुन सवार रहती है। कार्य को सकारात्मक आयाम देने के लिए इस चक्र पर ध्यान लगाएं।पेट तक गहरी श्वास लें इस के सक्रिय होने पर तृष्णा, ईर्ष्या, चुगली, लज्जा,भय, घृणा आदि दूर हो जाते हैं। यह चक्र मानव में आत्मविश्वास भर देता है।

मनस शरीर

 चौथा है, मनस शरीर। इस शरीर के साथ अनाहत चक्र का संबंध है।अगर आपकी ऊर्जा अनाहत में सक्रिय है तो आप एक सृजनशील व्यक्ति होंगे। हृदय पर संयम करने और ध्यान लगाने से यह चक्र जागृत होने लगता है। व्यक्ति के भीतर प्रेम और संवेदना का जागरण होता है। ऐसा व्यक्ति अत्यंत हितेषी और स्वार्थ रहित सर्वप्रिय बन जाता है।

आत्मिक शरीर

 पांचवा है आत्मिक शरीर। इस शरीर के साथ विशुद्ध चक्र का संबंध है।यह चक्र कंठ में स्थित है। यदि आपकी ऊर्जा इसके आसपास एकत्रित है तो आप अति शक्तिशाली होंगे। ध्यान लगाने से यह चक्र जागृत होने लगता है। जागने पर 16 कला और 16 विभूतियों का ज्ञान हो जाता है। तब भूख और प्यास पर भी नियंत्रण किया जा सकता है।

ब्रह्मशरीर

 छठा है ब्रह्मशरीर। इस शरीर के साथ आज्ञा चक्र का संबंध है। जिस व्यक्ति की उर्जा यहाँ ज्यादा सक्रिय रहती है, वह बुद्धिमान, संवेदनशील और तेज दिमाग का बन जाता है। सब कुछ जानने के बावजूद चुप रहता है। भृकुटी के बीच में  ध्यान लगाने और साक्षी भाव में रहने से यह चक्र जागृत हो जाता है। मनुष्य में अपार शक्तियां और सिद्धियां निवास करती हैं। आज्ञा चक्र जागृत होने पर शक्तियां जाग जाती हैं  और व्यक्ति सिद्ध पुरुष बन जाता है।

निर्वाण शरीर

सातवां निर्वाण शरीर हैं। इस शरीर के साथ सहस्रार चक्र का संबंध है। सहस्रार मस्तिष्क के मध्य भाग में होता है जहां चोटी रखते हैं। यदि व्यक्ति नियमों का पालन करते हुए यहां तक पहुंच गया है तो संसार, सन्यास और सिद्धियों से उसका कोई सरोकार नहीं रहता। मूलाधार से होते हुए सहस्रार तक पहुंचा जा सकता है।शरीर में इस स्थान पर महत्वपूर्ण जैविक विद्युुत  संग्रह है। इसे ही मोक्ष का द्वार कहते हैं।


करे योग, खुद को रखें  निरोग 

सूर्य नमस्कार
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योग को रोगी, निरोगी से लेकर हर उम्र के लोग कर सकते हैं। सूर्य नमस्कार योग आसनों में सर्वश्रेष्ठ है। इस आसन को स्त्री, पुरुष, बच्चे, युवा और बुजुर्गों के लिए उपयोगी बताया गया है। यह अकेला अभ्यास ही साधक को संपूर्ण योग व्यायाम का लाभ पहुंचाने में समर्थ है। इसके अभ्यास से साधक का शरीर निरोग और स्वस्थ होकर तेजस्वी हो जाता है। शरीर की संरचना भूमि,गगन, वायु, अग्नि और जल से हुई है।इसे सुचारु रुप से गतिमान नाड़ी तंत्र करता है।

 जिस व्यक्ति के शरीर में नाड़ी तंत्र जरा असंतुलित होता है वह गंभीर रुप से बीमारी की चपेट में आ जाता है। सूर्य नमस्कार स्नायु ग्रंथि को उनके प्राकृतिक रूप में संतुलित रखता है। ध्यान समाधि में बैठने वाले आसनों में मेरुदंड कटिभाग और सिर को सीधा रखा जाता है और स्थिरता पूर्वक बैठना होता है।

साधना के समय नेत्र बंद कर लेनी चाहिए। आंखें खुली रहने से आंखों की तरलता नष्ट हो, विकार पैदा हो जाने की आशंका रहती है। यह आसन पैरो की वातादि अनेक व्याधियों को दूर करता है। विशेषकर कटिभाग तथा टांगों की संधि और संबंधित नस नाड़ियों को लचक बनाता है। स्वसन क्रिया को सम रखता है।इंद्रिय और मन को शांत एवं एकाग्र रखता है इससे बुद्धि बढ़ती है और शुद्ध  होती है।चित्त में  स्थिरता आती हैं। स्मरण शक्ति और विचार शक्ति भी बढ़ती है।

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