Basic Principles of Buddhist Philosophy
बौद्ध दर्शन के मूल सिद्धांत
महात्मा बुद्ध द्वारा प्रतिपादित दर्शन बौद्ध दर्शन कहलाया। बौद्ध दर्शन का जन्म तो भारत में हुआ परंतु यह दर्शन विदेशों में भी बहुत प्रचलित हुआ।
बौद्ध दर्शन के मूल सिद्धांत क्या है? जिससे यह दुनिया के कई देशों में मशहूर हुआ। इस लेख में हम बौद्ध दर्शन के मूल सिद्धांतों के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे।
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बौद्ध दर्शन के मूल सिद्धांत क्या है?
बौद्ध दर्शन के मुख्य सिद्धांत निम्न हैं:
- चार आर्य सत्य
- अष्टांगिक मार्ग
- प्रतीत्यसमुत्पाद
यह तीन विचार ही बौद्ध दर्शन का आधार है और इन्हें ही बौद्ध दर्शन के सिद्धांत के रूप में भी स्वीकार किया जाता है।
बौद्ध दर्शन के चार आर्य सत्य क्या है?
बुद्ध के अनुसार चार आर्य सत्य इस प्रकार हैं:-
दुख :- जीवन दुखों से भरा है जिसे हम सुख समझते हैं उनका अंत भी दुख ही है। सुखों की प्राप्ति की इच्छा भी दुख लिए हुए हैं और सुखों को भोगने का परिणाम भी दुख के रूप में प्रकट होता है क्योंकि सुख स्थाई नहीं है।
दुख समुदाय:- प्रत्येक दुख का कारण होता है। संसार में प्रत्येक घटना का कोई न कोई कारण होता है और बिना कारण के कुछ भी घटित नहीं होता। दुनिया की कोई वस्तु स्थाई नहीं है। प्रत्येक वस्तु के उत्पन्न या नष्ट होने का जिस प्रकार कोई ना कोई कारण अवश्य होता है, उसी प्रकार दुखों का जन्म भी किन्ही कारणों से ही होता है।
दुख निरोध :- दुख के कारणों को यदि हम समाप्त कर दें तो दुख को भोगने से रोका जा सकता है।बौद्ध दर्शन का यह मत है कि दुखों का निवारण किया जा सकता है। यह सच्चा ज्ञान प्राप्त होने पर ही संभव है। ज्ञान प्राप्त होने पर अविद्या का नाश हो जाता है और व्यक्तित्व मोह माया के बंधनों से मुक्त हो जाता है जिससे उसे सुख और दुख का अनुभव नहीं होता है।
दुख के निवारण का मार्ग :- बौद्ध दर्शन के अनुसार यदि मनुष्य को सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हो जाए तो उसके दुख समाप्त हो सकते हैं। इस ज्ञान की प्राप्ति के लिए महात्मा बुद्ध ने अष्टांगिक मार्ग निर्धारित किए हैं जिनका पालन करने पर अज्ञानता का नाश हो जाता है और व्यक्ति को ज्ञान का प्रकाश मिल जाता है।
आष्टांगिक मार्ग या मध्यम मार्ग क्या है?
महात्मा बुद्ध के अनुसार सांसारिक दुःखों को दूर करने के आठ मार्ग हैं। इन्हें आष्टांगिक मार्ग या मध्यम मार्ग कहा गया है।
मध्यम मार्ग को अपनाकर मनुष्य निर्वाण प्राप्त करने में सक्षम है। यह अष्टांगिक मार्ग या मध्यम मार्ग निम्नलिखित हैं:-
- सम्यक् (शुद्ध) दृष्टि – सम्यक दृष्टि से तात्पर्य है कि सच को देखना तथा पहचानना व्यक्ति को चाहिए कि वह वस्तुओं के शुद्ध और कल्याण कार्य रूप को पहचाने। वस्तुओं का सच्चा ज्ञान होने पर ही सही कर्म करने की दिशा मिलती है । अर्थात मनुष्य का सत्य, असत्य, पाप-पुण्य आदि के अंतर को समझना।
- सम्यक् संकल्प – संकल्प सांसारिक भोग विलास की इच्छाओं का त्याग करना ज्ञान प्राप्ति का दूसरा मार्ग है। मनुष्य को दृढ़ संकल्प होकर अपने इस उद्देश्य की प्राप्ति करनी चाहिए क्योंकि बिना दिल संकल्प के यह संभव नहीं है। अर्थात इच्छा और हिंसा के विचारों का त्याग करना।
- सम्यक् वाणी – महात्मा बुध के अनुसार तीसरा मार्ग है अपनी वाणी पर नियंत्रण रखना जिससे कोई गलत बात ना निकले। वाणी पर नियंत्रण ना रखने से ही आपस में कटुता या वैर भाव उत्पन्न होता है और लोग आपस में मत भेज रखते हैं। इसीलिए मनुष्य को अपनी वाणी पर संयम रखना चाहिए और ऐसी भाषा बोलने चाहिए जिससे दूसरों के हृदय को सुकून मिले उन्हें दुख ना पहुंचे । अर्थात सत्य और विनम्र वाणी बोलना।
- सम्यक् कर्म – व्यक्ति के कर्म भी उचित होने चाहिए क्योंकि जीवन में यदि हम अच्छे कर्म करेंगे तो उससे हमारे मन को शांति मिलेगी हमारे कर्मों से दूसरों का भी भला होगा। हमारे किसी कार्य से किसी अन्य को कष्ट होता है या किसी दूसरे जीव पर अन्याय अत्याचार होता है तो वह हमारे मन की शांति को भी खत्म कर सकते हैं। अर्थात सदा सही और अच्छे कार्य करना।
- सम्यक् आजीव – महात्मा बुद्ध के अनुसार जिस प्रकार हम काम करते हैं उस कामों का असर हमारे जीवन का पड़ता है हमें अपनी आजीविका के लिए भी अच्छे मार्गों का चयन करना चाहिए यदि हम बुरे मार्ग से अपनी आजीविका कमाते हैं तो उस से कमाए गए धन से हमें सुख की प्राप्ति नहीं होती है ।अर्थात जीविका के उपार्जन हेतु सही तरीके से धन कमाना।
- सम्यक् भाव या सम्यक प्रयत्न:- मनुष्य को अच्छी प्रवृत्तियों का विकास अपने अंदर करना चाहिए ऐसा करने से उसके मन का भाव ठीक होता है सम्यक प्रयत्नों द्वारा मन में अच्छे-अच्छे भावों को स्थान देना चाहिए जिससे बुरे विचार मन में प्रवेश ना कर सके अर्थात – बुरी भावनाओं से दूर रहना।
- सम्यक् स्मृति – महात्मा बुद्ध के अनुसार मनुष्य विचारों को शुद्ध रखें और मन कामा वचन एवं कर्म से उन पर अमल भी करें। कभी भी किस भावनाओं में बहकर हमारे अच्छे विचार बुरे विचारों में परिवर्तित ना हो हमें हमेशा ज्ञान की बातों को याद रखना चाहिए यही सम्यक् स्मृति है अर्थात अच्छी बातों तथा अच्छे आचरण का प्रयोग करना।
- सम्यक् समाधि – सम्यक समाधि से तात्पर्य सही एकाग्रता से है। हमारा ध्यान सही दिशा में ही समाधि स्थित हो समय समाज से ही ज्ञान प्राप्त हो सकता है और दुखों से मुक्ति मिल सकती है। सही समाधि के बिना कोई कार्य नहीं हो सकता और उसमें गलती की संभावना बनी रहती है। आता एकाग्र चित्त होकर ही समाधि संभव है। पहले 7 मार्गों को सफलतापूर्वक पर कर्ज लेने के पश्चात व्यक्ति सम्यक समाधि के योग्य हो जाता है। अर्थात किसी विषय पर एकाग्रचित होकर विचार करना।
प्रतीत्यसमुत्पाद या द्वादश निदान क्या है?
प्रतीत्यसमुत्पाद का अर्थ यह है कि प्रत्येक परिणाम के पीछे उसका कारण छिपा होता है अर्थात बिना कारण के कोई भी घटना नहीं घटती।
चार आर्य सत्य से यह बात पहले ही स्पष्ट हो चुकी है क्योंकि यह सिद्धांत बौद्ध दर्शन का आधार है। इस सिद्धांत के अनुसार कार्य कारण का एक चक्र चलता रहता है जिसमें 12 कड़ियां बताई गई हैं जिनका आपस में कारण और परिणाम का संबंध है। इसीलिए इस सिद्धांत को द्वादश निदान भी कहते हैं।
कारण और परिणाम पर आधारित यह 12 कड़ियां निम्न प्रकार अपना चक्र चलाती रहती हैं।जिसके कारण मनुष्य दुख भोगता रहता है।
सुविधा पूर्वक समझ में लाने के लिए हम चक्र की 12वीं अर्थात अंतिम कड़ी से प्रारंभ करते हैं।
यह आखिरी कड़ी वृद्धावस्था तथा मृत्यु की है:-
- हम जरा मरण क्यों भोंगते हैं?
- क्योंकि हम पैदा होते हैं। हम पैदा क्यों होते हैं?
- क्योंकि हम में पैदा होने का भाव या प्रवृत्ति होती है। पैदा होने की प्रवृत्ति क्यों होती है?
- क्योंकि हम संसार की वस्तुओं से लगाव रखते हैं। हम यह लगाव क्यों रखते हैं?
- क्योंकि हमें विश्व की वस्तुओं का आनंद उठाने की तृष्णा है। हमारी तृष्णा क्यों उत्पन्न होती है?
- हमारी इंद्रियों के अनुभव के कारण। हमें इंद्रियों का अनुभव क्यों होता है?
- क्योंकि वस्तुएं हमारी इंद्रियों के संपर्क में आती हैं। हमें यह संपर्क किन कारणों से होता है ?
- क्योंकि हमारी 6 ज्ञानेंद्रियां हैं। हमारी 6 ज्ञानेंद्रियां क्यों हैं
- क्योंकि हम जीव हैं। हम जीवधारी क्यों हैं?
- क्योंकि भ्रूण में चेतना होती है ।भ्रूण में यह चेतना क्यों आती है?
- कर्मों के प्रभाव के कारण। कर्मों का प्रभाव क्यों पड़ता है।
- हमारी अज्ञानता के कारण।
इस प्रकार सब दुखों का कारण हमारी अज्ञानता है।
गौतम बुद्ध के उपदेश Teachings of gautam buddha
सत्य और अहिंसा को अपने जीवन का आधार मनाने वाले और बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध ने लोगों को सच्चाई के मार्ग पर चलने की शिक्षा दी और जीवों की दया करने के लिए कहा एवं पशुबलि की जमकर निंदा की। महात्मा गौतम बुद्ध के कुछ उपदेश (Mahatma Budh ki Shiksha) इस प्रकार है –
1. अच्छा वर्तमान
महात्मा गौतम बुद्ध ने अपने उपदेशों में कहा है कि मनुष्य को अपने भूतकाल अर्थात अपने बीते कल के बारे में नहीं सोचना चाहिए और न ही भविष्य की चिंता करनी चाहिए, बल्कि मनुष्य को अपने वर्तमान को सुनहरा बनाने के लिए सदैव प्रयास करना चाहिए, तभी वे अपने जीवन में सुखी रह सकते हैं।
2. मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु क्रोध
महात्मा बुद्ध के अनुसार क्रोध मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है जो उसके ज्ञान को हर लेता है और उससे कई ऐसे गलत काम करवा देता है जिससे उसे बाद में नुकसान होता है ।इसीलिए हमें सदैव अपने क्रोध पर नियंत्रण करना चाहिए ।
3. आशंका और शक से दूर
महात्मा बुद्ध के अनुसार हमें आशंका और ट्रक से दूर रहना चाहिए क्योंकि आशंका और शक अगर किसी के मन में आ जाता है तो अच्छे से अच्छा है रिश्ता भी टूट जाता है इसीलिए हमें इस बुराइयों से दूर रहना चाहिए।
स्वयं पर विजय
महात्मा बुद्ध ने अपने इस उपदेश में बताया कि मनुष्य चाहे हजारों लड़ाइयां ही क्यों न लड़ लें लेकिन जब तक वह खुद पर जीत हासिल नहीं करता, तब तक उसकी सारी जीत बेकार हैं। इसलिए खुद पर विजय प्राप्त करना ही मनुष्य की असली जीत है।
5. सूर्य, चंद्र और सच कभी नहीं छिपते:
गौतम बुद्ध ने कहा कि जिस प्रकार सूर्य और चंद्रमा अपनी रोशनी छिपा नहीं सकते उसी प्रकार सच भी ज्यादा नहीं खींच सकता उसे सामने आना ही होता है।
6. लक्ष्य की अपेक्षा अच्छे साधन पर ध्यान
गौतम बुद्ध ने अपने उपदेश में कहा है कि मनुष्य को अपने लक्ष्य की प्राप्ति हो या न हो, लेकिन लक्ष्य को पाने के लिए अपनाने वाला साधन अच्छा होना चाहिए।
7. प्रेम सर्वोच्च
गौतम बुद्ध ने अपने उपदेश में कहा कि, बुराई को कभी बुराई से खत्म नहीं किया जा सकता है बल्कि इसे सिर्फ प्रेम से ही जीता जा सकता है।
बौद्ध संघ किसे कहते हैं?
महात्मा बुद्ध ने अपने सिद्धांतों और उपदेशों के प्रचार प्रसार के लिए अनेक बौद्ध संघों के स्थापना की। इन्हें विहार कहा जाता था।
संघ में सभी जाति के लोगों को प्रवेश करने की अनुमति थी। ये अत्यंत सादा जीवन जीते थे।. भिक्षा माँगकर अपनी आवश्यकताओं को पूरा करते थे। इसलिए ये भिक्षु या भिक्षुणी कहलाते थे।
महात्मा बुद्ध द्वारा प्रतिपादित उपदेश एवं सिद्धांत अत्यंत ही सरल और प्रभावी थी जिस कारण बौद्ध धर्म देश विदेश में अत्यंत लोकप्रिय हुआ।
हमें आशा है कि इस लेख से आपको महात्मा बुद्ध के सिद्धांतों और उपदेशों को समझने में आसानी होगी। यदि आपको यह लेख अच्छा लगा तो आप अपने कमेंट जरूर लिखें और इसे शेयर भी करें।
धन्यवाद
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