कोरोना वायरस या जैविक युद्ध - DailyNewshunt

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Tuesday, March 17, 2020

कोरोना वायरस या जैविक युद्ध

हजारों लोगों की जान ले चुका करो ना वायरस इंसानों में कैसे आया?
यह किसी प्रयोग का हिस्सा तो नहीं?
कहीं इसका विकास वुहान की प्रसिद्ध जैविक प्रयोगशाला में तो नहीं हुआ?
मुमकिन है ,किसी बड़ी चूक के चलते या वायरस वहां से बाहर आ गया हो ।
आशंकाएं कई हैं लेकिन इनमें उलझने की बजाय जरूरी है कि कोरोना से निपटने के कारगर उपाय ढूंढने जाएं।

सामूहिक नरसंहार के लिहाज से जैविक युद्ध काफी मुफीद और किफायती समझा जाता 
है।

ना कहीं पर एलान-ए-जंग हुआ, ना कहीं फौजी तैनात हुई और ना कहीं कोई बमबारी हुई । लेकिन दुनिया भर में दहशत फैल गई पूर्णविराम इस दहशत की वजह को रोना नामक एक ऐसा वायरस है, जो धड़ाधड़ लोगों को बीमार करता जा रहा है। इसने पूरी दुनिया में हाहाकार मचा रखा है। 125 से ज्यादा देशों में इस वायरस ने कहर बरपा रखा है। एक अनुमान के अनुसार दुनिया भर में इस वायरस के संक्रमण के एक लाख से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं।

 एक अनुमान के अनुसार दुनिया भर में इस वायरस के संक्रमण के एक लाख से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक चीन में अचानक उपजे कोरोना वायरस के संक्रमण से लगभग 3000 लोगों की जान जा चुकी है। हालांकि, इस वायरस से मरने वालों के ताजा आंकड़े पिछले कुछ हफ्तों के मुकाबले काफी कम है या वायरस केवल चीन तक ही सीमित नहीं है दक्षिण कोरिया में भी रोज नए मामले सामने आ रहे हैं । 

 वहां संक्रमित लोगों की संख्या संख्या 6300 के पार हो गई है और मौतों का आंकड़ा भी 42 के ऊपर जा पहुंचा है। यह वायरस पिछले साल दिसंबर के महीने में सबसे पहले चीन के वुहान शहर में फैलना शुरू हुआ, उसके बाद धीरे-धीरे चीन और फिर पूरी दुनिया में तेजी से फैल गया।इस वायरस से महाबली अमेरिका सहित अनेक देश बुरी तरह आतंकित हैं। 

इस आतंक की वजह यह है कि उसके दुष्प्रभावों पर कोई चिकित्सकीय शोध उपलब्ध ना होने से इलाज के प्रति पूरी तरह से अनभिज्ञता है। यानी, जान बचाने का तरीका मालूम नहीं है। इतिहास गवाह है कि जब भी इस तरह की कोई अनसुलझी पहेली सामने आती है तो साजिशों की आने लगती है। 

आज से तकरीबन 35 साल पहले भोपाल में जब एक कारखाने से गैस का रिसाव हुआ था और 3000 से अधिक लोग नींद में ही काल कंप्लीट हो गए थे तब भी हालत कुछ ऐसे ही थे पूर्णविराम उसका भी इलाज मालूम नहीं था और बड़े-बड़े  विज्ञानी या वायरोलॉजिस्ट बगले झांक रहे थे। ऐसे में या सुबह-सुबह होना लाजमी था कि वह दुर्घटना थी या रासायनिक युद्ध का कोई प्रयोग था?

ऐसा ही कुछ संदेह कोरोनावायरस और उसके यकायक फैलाव को लेकर भी जाहिर किया जा रहा है। यह सवाल पूरी दुनिया की फिजा में तैर रहा है कि यह किसी जैविक युद्ध या बायो लॉजिकल वार फेयर का प्रयोग तो नहीं है? या फिर चीज से जैविक आतंकवाद या बायोटररिज्म की शुरुआत तो नहीं होने जा रही है? 

हालांकि कहीं से भी इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं हो पाई है और होने के आसार भी कम हैं बहरहाल यह सवाल न सिर्फ अपनी जगह मौजूद है, बल्कि कईयों को परेशान किए हुए हैं। जैविक युद्ध में जैविक एजेंटों का इस्तेमाल जीवित लोगों को मारने के लिए किया जाता है। सामूहिक नरसंहार के लिहाज से जैविक युद्ध काफी मुफीद समझा जाता है यह सस्ता भी पड़ता है और इसके भंडारण के लिए कोई बहुत ज्यादा जगह भी नहीं इस्तेमाल होती है।

जैविक हथियारों का इस्तेमाल सदियों से होता आ रहा है। विश्व में ऐसे अनेक उदाहरण है, जहां जैविक हथियारों का, युद्ध में या जनसाधारण को नुकसान पहुंचाने के इरादे से जबरदस्त इस्तेमाल हुआ है 1980 से ही जैविक हथियारों का इस्तेमाल कई देश युद्ध में करते आ रहे हैं पुलिस टॉप 1980 से 1988 तक इराक ने फारस की खाड़ी के युद्ध में ईरान के खिलाफ मस्टर्ड गैस, सरीन, एंथ्रेक्स का उपयोग किया ।

साल में इनेलो शीश नामक बीमारी जो आंतों को संक्रमित कर देती है 4 ग्राम 1986 में श्रीलंका में सक्रिय तमिल गोरेलाल ने श्रीलंका के चाय उद्योग की कमर तोड़ने के लिए चाय में पोटेशियम साइनाइड मिला दिया। 1993 में एक जापानी संप्रदाय ने टोक्यो की इमारतों की छतों से एंथ्रेक्स का हवाई छिड़काव किया । ठीक उसी साल ईरान में अमेरिका और यूरोप की फौजों की जलापूर्ति में एक अज्ञात जैविक तत्व की मिलावट कर दी।

जैविक आतंकवाद की अगली कार्रवाई 2001 में हुई जब अमेरिकी डाक सेवा से गुजरने वाले 7 लिफाफा में फ्लोरिडा वाशिंगटन, न्यूयॉर्क और न्यूजर्सी में एंथ्रेक्स के वायरस पाए गए। 22 लोग रोग ग्रस्त हुए जिनमें से पांच अपनी जान से हाथ धो बैठे। 2002 में इंग्लैंड के मैनचेस्टर में रेसिंग का उत्पादन करते हुए आतंकवादी पकड़े गए जिनकी रूसी दूतावास पर हमला करने की योजना थी। 

दूसरे विश्व युद्ध की शुरुआत से पहले जापानियों ने एंथ्रेक्स और शिगेलोसिस जैसी बीमारियों को जन्म देने वाले जैविक हथियारों का उत्पादन किया। इन हथियारों का उपयोग चीनी युद्ध बंदियों और नागरिकों पर किया गया। जब दूसरा विश्व युद्ध शुरू हुआ तो जापान में इन बीमारियों का खुलकर जैविक हथियारों के रूप मैं इस्तेमाल किया।

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