Bermuda Triangle
बरमूडा ट्रायंगल
Bermuda Triangle |
Bermuda Triangle आधिकारिक तौर पर चिन्हित कोई क्षेत्र नहीं है। दुनिया के किसी नक्शे में भी Bermuda Triangle को नहीं दिखाया गया है।Bermuda Triangle को Devil Triangle भी कहा जाता है।
यह अटलांटिक महासागर में पाया जाने वाला एक त्रिकोणीय जगह है।
इस स्थान पर कई जहाज़ एवं विमान रहस्यमई तरीके से लापता हो चुके हैं।इसी वजह से इसे शैतान का त्रिकोण भी कहा जाता है।
बरमुंडा ट्रायंगल की भोगौलिक स्थिति
बरमुंडा ट्रायंगल अटलांटिक महासागर में 13लाख Square Km मे फैला एक विशाल समुद्र है। माना जाता हैं कि यहां ships 🚢 आते तो हैं पर कभी वापस जाते नही, ना जिंदा और ना ही मुर्दा। मानो यह समुद्र की गहराइयों में कहीं खो जाते हों
Bermuda Triangle में लगभग 100 से भी अधिक हादसे हो चुके हैं। इसमें कुछ ऐसे हादसे भी शामिल है जिसका अब तक कोई भी रिकॉर्ड नहीं है।
बरमूडा ट्रायंगल से संबंधित रहस्य
1964 में पहली बार Vincent Gaddis ने इन हादसों के बारे में बताते हुए 'आरगोजी' नाम का एक मैगजीन लिखा।Vincent ने हादसों के क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए तीन काल्पनिक लाइन draw करके मिलाया और इसे नाम दिया 'Bermuda Triangle'।
इस मैगजीन के प्रकाशित होने के बाद यह खबर आग की तरह फैलने लगी। इसके बाद इससे संबंधित कई सारी कहानियां भी बनने लगी । कई किताबे छपने लगी और मूवीज भी शुरू होने लगी।
कुछ मूवीस में तो यह भी दिखाया गया कि Bermuda Triangle में एलियंस आते हैं और इंसानों को अगवा करके उन पर एक्सपेरिमेंट करते हैं।कई लोग इसे धर्म या भगवान से जोड़कर भी देखते हैं।
Space Ship |
इस कहानी की शुरुआत होती है 1492 यानि कि तकरीबन 527 साल पहले,अक्टूबर का महीना था। कोलंबस उन दिनों इसी रास्ते से गुजर रहा था। किसी यात्रा के दौरान उसे तेज लाइट चमकती हुई दिखाई दी।कोलंबस ने इस घटना को अपने डायरी में लिख लिया था। लेकिन समय के साथ-साथ इस घटना को भुला दिया गया।
1492-1945 तक और भी कई हादसे हुए होंगे पर इसका कोई भी रिकॉर्ड नहीं है। 9 जुलाई 1945 USA नेवी का आफिसर ने Flight 19 मे अपने 10 क्रू मेंबर के साथ रात के 9:00 बजे उड़ान भरी थी। उड़ान के करीब 4 घंटे बाद इस प्लेन का संपर्क टूट गया।इसके बाद कोई भी SOS मैसेज या रेडियो सिग्नल नहीं मिला।
Flight 19 |
अगली सुबह एक सर्च ऑपरेशन चलाया गया जो कि 10 दिनों तक चलता रहा। फिर भी प्लेन का कुछ भी पता नहीं चल पाया।
इस घटना के 5 महीने बाद टोरपीडो बोमर्स के एक ग्रुप ने 15 क्रू मेंबर के साथ फ्लोरिडा के नेवल एयर स्टेशन से उड़ान भरी। यह एक प्रशिक्षण प्लेन था उन स्टूडेंट्स के लिए जो नये थे । इसीलिए इनके साथ 28 साल के एक कमांडर भी थे।
जाने मोनालिसा पेंटिंग के पीछे की रहस्यमई बातें,मोनालसा कौन थी? किसने पेंटिंग बनाई?
इन Planes को east मे जाना था और बहामास में बम गिरा के कुछ दूर आगे जाना था। इसके बाद लगभग 90 डिग्री में मुड़ के 73 मील तक उड़ान भरना था और वापस उसी स्टेशन में लौट आना था। इतना करने के लिए उनके पास 2 से 3 घंटे का वक्त था। इसीलिए इन विमान में लगभग 3 घंटे तक का ही ईंधन भरा गया।
कमांडर ने सभी pilots को पोजीशन जांचने के लिए कहा।पर असल में किसी को भी यह पता नहीं चल पा रहा था कि वह आखिर कहां पर थे।
पायलट ने कहा कि मैं फ्लोरिडा ऐयरबेस को ढूँढने की कोशिश कर रहा हूं, पर मेरे दोनों compass काम नहीं कर रहे है।उस समय 3:50 हो रहा था। पायलट अगर सूर्य की दिशा से भी समय का सही तालमेल करता तो उसे फ्लोरिडा की दिशा मिल सकती थी।उस समय मौसम साफ था। लेकिन देखते ही देखते अचानक बादल छाने लगा और सूर्य अचानक से गायब हो गया।
अचानक मौसम में हुए बदलाव से radio frequency लगातार बदल रही थी।
इन सभी घटनाओं के बारे में रेडियो कम्युनिकेशन द्वारा फ्लोरिडा ground क्रू को भी बताया जा रहा था पर वो लोग भी कुछ नहीं कर पा रहे थे।
करीब 4 घंटे बाद ईंधन खत्म हो गया और एक-एक करके सभी planes समुद्र में टकराते चले गए।शाम के 7:00 बजे एक रेस्क्यू प्लेन भेजा गया जो हवा के साथ पानी में भी लैंड कर सकता था, पर डेढ़ घंटे बाद रेस्क्यू एयरप्लेन भी खामोश हो गया।
इस घटना के 5 दिन तक सौ बार से भी ज्यादा उस क्षेत्र में खोजबीन की गई।पर विमानों का कुछ भी पता नहीं चल पाया।
70 सालों तक फ्लाइट 19 के साथ हुई यह घटना राज़ ही बनी रही। इस घटना के बाद भी एक के बाद एक कई घटनाएं हुई।
1947 में 1
1948 में 2
1949 में 1
इसी तरह 1965 तक यहां पर कई घटनाएं घटित हुई।हम यह अनुमान लगा सकते है कि हजारों फीट ऊपर उड़ रहे विमान को बरमूडा ट्रायंगल अपने अंदर समा सकता है, तो पानी जहाज जो समुद्र में तैरता है,उसके साथ कितना भयानक हादसा होता होगा।
बरमूडा ट्रायंगल से संबंधित रहस्यमई घटनाओं का जिक्र सबसे पहले क्रिस्टोफर कोलंबस ने किया था। कोलंबस ने बताया कि 1492 में जब वह अपने क्रू के साथ अमेरिका महाद्वीप की तरफ जा रहे थे तब इस क्षेत्र में आते ही उनके कंपास ने काम करना बंद कर दिया और गलत दिशा दिखाने लगा।
क्रिस्टोफर कोलंबस को इस क्षेत्र में कुल अजीब सी रोशनी चमकती नज़र आई। और आसमान में आग का गोला दिखाई दिया।
इस क्षेत्र के लिए बरमुंडा ट्रायंगल शब्द का प्रयोग सबसे पहले विन्सेंट गाडिस के द्वारा Argosy magazine के लिए लिखे गए एक लेख में किया गया था।
इस आर्टिकल में विन्सन ने बताया कि बरमुंडा ट्रायंगल में कई जहाज लापता हो चुके है। इसलिए इनके पीछे जरूर किसी paranormal power का हाथ है।इस लेख के बाद इस घटना पर कई मूवीस बनी। बरमूडा ट्रायंगल में होने वाले घटनाएं समुद्र में होने वाली घटनाओं से अलग नहीं है लेकिन यहां ऐसी रहस्यमई घटनाएं घटी है जिनकी वजह से इसने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींच लिया।
1492 में पहली बार क्रिस्टोफर कोलंबस ने यह आवलोकन किया कि यहां पर कुछ अजीब हो रहा है और इसके बाद कई जहाज़ एक के बाद एक डूबने लगे। इसमें भी दिशा का पता लगाने के लिए कंपास का इस्तेमाल किया जाता था। पर यह जहाज़ जैसे ही बरमूडा ट्राएंगल में प्रवेश करता था कंपास दिशा दिखाना बंद कर देता था और ऐसी स्थिति कोई भी दिशा भूल सकता है।
इसके बाद अचानक मौसम में बदलाव होने के कारण पानी में उंची लहरें उठने लगती थी। और जहाज इन लहरो की चपेट में आ जाता था।अगर हम कंपास से जुड़ी समस्याओं को अनदेखा कर दे तो जहाज के साथ हुए सभी घटनाओं को हम प्राकृतिक आपदा (natural disasters) का नाम दे सकते हैं
क्योंकि बरमूडा ट्राएंगल में मौसम का खराब होना, बड़ी-बड़ी लहरों का उठना आम बात है।
इन सारी घटनाओं के कारण एलियंस और सुपर नेचुरल पावर जैसे विचार जन्म लेते हैं। तो आइए जानते हैं किस तरह से घटनाएं घटित होती थी।
समुद्र बिल्कुल शांत होता था कोई भी तूफान नहीं होता था जहाज़ बड़े ही आराम से यात्रा करता और फिर अचानक से पानी के अंदर धंसने से लगता था जैसे कोई इंसान दलदल में धंसने लगता है।
जहाज में कोई सुराख, कोई भी नुकसान नहीं होता था। फिर भी जहाज़ पानी में तैरने के बजाय पानी के अंदर धसने लगता था।यहां पर एक प्रोफेशनल तैराक भी तैर नहीं पाता था। लगता था जैसे कोई अदृश्य शक्ति है जो सभी चीजों को अपने अंदर खींच रहा है।
ऐसे अजीबोगरीब घटनाओं के शिकार हुए जहाज़ में से ज्यादातर जहाज़ो को खोजा नहीं जा सका।वह समुद्र के किस हिस्से में चला गया यह आज तक एक राज़ है।जहाज़ और विमानों के साथ में घटित अजीबोगरीब घटनाओं के बाद वैज्ञानिक सोच रखने वाले भी र सुपर नेचुरल पावर जैसे बातों में विश्वास करने लगेगा। लेकिन वास्तविकता क्या है? यह जानना जरूरी है।
इस घटना की शुरुआत हुई 9 जुलाई 1945 से यूएस नेवी ने 10 क्रू मेंबर के साथ उड़ान भरी। जब यह प्लेन बरमूडा ट्राएंगल की तरफ जाने लगा तो अचानक ही इससे संपर्क टूट गया और फिर इस प्लेन के बारे में पता नहीं चल पाया।
इस घटना के 5 महीने बाद 5 torpedo bomber के एक ग्रुप ने उड़ान भरी और यह बरमूडा ट्राएंगल की चपेट में आ गया। लेकिन यह हादसा अपने पीछे की सबूत छोड़ गया।
उड़ान के तुरंत बाद ही अचानक से मौसम में बदलाव हुआ था। सारे विमान तूफान के चपेट में आ गया था। पर यह कैसे हुआ?कैसे अचानक मौसम में बदलाव आ गया?
इस सवाल का जवाब किसी के पास भी नहीं था पर कुछ सालों पहले नासा ने बरमूडा ट्राएंगल का फोटो प्रकाशित करते हुए कहा कि यह है hexagonal cloud के कारण होता है पर हेक्सागोनल क्लाउड्स के बारे में समझ पाना आम इंसानों के सोच से परे था।
Hexagonal Clouds का एक विशेष Pattern है जो शनि ग्रह के उत्तरी ध्रुव पर पाएं जाने वाले बादलों से मिलता-जुलता है। बरमूडा ट्रायंगल पर मौजूद यह Hexagonal Clouds 32 किमी.से लेकर 88 किमी के दायरे में फैले हुए हैं। जैसे जब पृथ्वी पर तेज़ तूफान आता है तो बड़े बड़े पेड़ गिर जाते हैं। तेज़ हवा के कारण आदमी उड़ जाते हैं। ठीक उसके तरह अगर आसमान में 273 किमी प्रति घंटे के रफ्तार वाला एयर बाम फटता है तो आसमान में उड़ने वाले विमान और समुद्र में चलने वाले जहाज़ 45 फीट ऊंची लहरों की तरफ खिंचते चले जाते हैं।
पिछले सौ सालों में बरमूडा ट्रायंगल की वजह से एक हजार से भी अधिक लोगों की मौत हो चुकी है।सन1945 से 1965 के बीच बरमूडा ट्रायंगल में 8 विमान रहस्यमय तरीके से गायब हो चुके हैं।
1 अक्टूबर 2015 को एक समुद्री जहाज के बरमूडा ट्रायंगल से गायब होने के एक महीने बाद इसका मलबा समुद्र की सतह से 15,000 फ़ीट की गहराई में मिला था। आज भी हर साल बरमूडा ट्रायंगल से औसतन 4 विमान और 20 समुद्री जहाज गायब हो जातें हैं। लेकिन वैज्ञानिकों ने जो थ्योरी दी है वह कई रहस्यों से पर्दा उठा सकता है।
कुछ मान्यताओं के अनुसार इसका संबंध हनुमान जी से हैं। हिंदू धर्म ग्रंथ रामायण में इस बरमूडा ट्रायंगल के बारे में उल्लेख मिलताहै।
एक कथा के अनुसार एक दैत्य ने इसी जगह पर हनुमान जी को मारने का प्रयत्न किया था।इसलिए इसे शैतानी टापू भी कहा गया है।
एक अन्य कथा के अनुसार बरमूडा ट्रायंगल ही वह जगह है जहां श्री हनुमान जी ने राक्षसों के राजा रावण के नाभि की अमृतमणि को स्थापित किया था।
रामायण में बरमूडा त्रिभुज का ज़िक्र कुछ इस प्रकार मिलता है कि जब हनुमान जी माता सीता की खोज में समुद्र पार कर रहे थे, तो बहुत से राक्षसों ने उन पर आक्रमण किया था। लेकिन पवन पुत्र हनुमान जी ने साहस और पराक्रम से सभी का संहार कर विशाल समुद्र को पार किया था।
ऐसी ही एक पिशाचिनी सिंहिका या छायाग्रह का उल्लेख भी सुंदरकांड के 1 अध्याय में मिलता है। जिसके अनुसार छायाग्रह समंदर में रहने वाली विशाल पिशाचिनी थी जो किसी भी वस्तु को चाहेे वह कितनी भी बड़ी क्यों न हो उसे अपनी तरफ खींच लिया करती थी।
इन Planes को east मे जाना था और बहामास में बम गिरा के कुछ दूर आगे जाना था। इसके बाद लगभग 90 डिग्री में मुड़ के 73 मील तक उड़ान भरना था और वापस उसी स्टेशन में लौट आना था। इतना करने के लिए उनके पास 2 से 3 घंटे का वक्त था। इसीलिए इन विमान में लगभग 3 घंटे तक का ही ईंधन भरा गया।
सब कुछ ठीक चल रहा था।सभी planes अपने प्लान के मुताबिक बहामास में बम गिरा के आगे बढ़ गऐ। करीब 1 घंटे 30 मिनट बाद सभी क्रू मेंबर को अजीब सी घबराहट महसूस होने लगी।तब यह निर्णय लिया गया कि इस योजना को रद्द करके वापस एयरबेस चले जाएंगे।
कमांडर ने सभी pilots को पोजीशन जांचने के लिए कहा।पर असल में किसी को भी यह पता नहीं चल पा रहा था कि वह आखिर कहां पर थे।
पायलट ने कहा कि मैं फ्लोरिडा ऐयरबेस को ढूँढने की कोशिश कर रहा हूं, पर मेरे दोनों compass काम नहीं कर रहे है।उस समय 3:50 हो रहा था। पायलट अगर सूर्य की दिशा से भी समय का सही तालमेल करता तो उसे फ्लोरिडा की दिशा मिल सकती थी।उस समय मौसम साफ था। लेकिन देखते ही देखते अचानक बादल छाने लगा और सूर्य अचानक से गायब हो गया।
अचानक मौसम में हुए बदलाव से radio frequency लगातार बदल रही थी।
इन सभी घटनाओं के बारे में रेडियो कम्युनिकेशन द्वारा फ्लोरिडा ground क्रू को भी बताया जा रहा था पर वो लोग भी कुछ नहीं कर पा रहे थे।
करीब 4 घंटे बाद ईंधन खत्म हो गया और एक-एक करके सभी planes समुद्र में टकराते चले गए।शाम के 7:00 बजे एक रेस्क्यू प्लेन भेजा गया जो हवा के साथ पानी में भी लैंड कर सकता था, पर डेढ़ घंटे बाद रेस्क्यू एयरप्लेन भी खामोश हो गया।
इस घटना के 5 दिन तक सौ बार से भी ज्यादा उस क्षेत्र में खोजबीन की गई।पर विमानों का कुछ भी पता नहीं चल पाया।
70 सालों तक फ्लाइट 19 के साथ हुई यह घटना राज़ ही बनी रही। इस घटना के बाद भी एक के बाद एक कई घटनाएं हुई।
1947 में 1
1948 में 2
1949 में 1
इसी तरह 1965 तक यहां पर कई घटनाएं घटित हुई।हम यह अनुमान लगा सकते है कि हजारों फीट ऊपर उड़ रहे विमान को बरमूडा ट्रायंगल अपने अंदर समा सकता है, तो पानी जहाज जो समुद्र में तैरता है,उसके साथ कितना भयानक हादसा होता होगा।
बरमूडा ट्रायंगल से संबंधित रहस्यमई घटनाओं का जिक्र सबसे पहले किसने किया?
Christopher Columbus |
बरमूडा ट्रायंगल से संबंधित रहस्यमई घटनाओं का जिक्र सबसे पहले क्रिस्टोफर कोलंबस ने किया था। कोलंबस ने बताया कि 1492 में जब वह अपने क्रू के साथ अमेरिका महाद्वीप की तरफ जा रहे थे तब इस क्षेत्र में आते ही उनके कंपास ने काम करना बंद कर दिया और गलत दिशा दिखाने लगा।
क्रिस्टोफर कोलंबस को इस क्षेत्र में कुल अजीब सी रोशनी चमकती नज़र आई। और आसमान में आग का गोला दिखाई दिया।
बरमुंडा ट्रायंगल शब्द का प्रयोग सबसे पहले किसने किया?
इस आर्टिकल में विन्सन ने बताया कि बरमुंडा ट्रायंगल में कई जहाज लापता हो चुके है। इसलिए इनके पीछे जरूर किसी paranormal power का हाथ है।इस लेख के बाद इस घटना पर कई मूवीस बनी। बरमूडा ट्रायंगल में होने वाले घटनाएं समुद्र में होने वाली घटनाओं से अलग नहीं है लेकिन यहां ऐसी रहस्यमई घटनाएं घटी है जिनकी वजह से इसने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींच लिया।
1492 में पहली बार क्रिस्टोफर कोलंबस ने यह आवलोकन किया कि यहां पर कुछ अजीब हो रहा है और इसके बाद कई जहाज़ एक के बाद एक डूबने लगे। इसमें भी दिशा का पता लगाने के लिए कंपास का इस्तेमाल किया जाता था। पर यह जहाज़ जैसे ही बरमूडा ट्राएंगल में प्रवेश करता था कंपास दिशा दिखाना बंद कर देता था और ऐसी स्थिति कोई भी दिशा भूल सकता है।
इसके बाद अचानक मौसम में बदलाव होने के कारण पानी में उंची लहरें उठने लगती थी। और जहाज इन लहरो की चपेट में आ जाता था।अगर हम कंपास से जुड़ी समस्याओं को अनदेखा कर दे तो जहाज के साथ हुए सभी घटनाओं को हम प्राकृतिक आपदा (natural disasters) का नाम दे सकते हैं
क्योंकि बरमूडा ट्राएंगल में मौसम का खराब होना, बड़ी-बड़ी लहरों का उठना आम बात है।
इन सारी घटनाओं के कारण एलियंस और सुपर नेचुरल पावर जैसे विचार जन्म लेते हैं। तो आइए जानते हैं किस तरह से घटनाएं घटित होती थी।
समुद्र बिल्कुल शांत होता था कोई भी तूफान नहीं होता था जहाज़ बड़े ही आराम से यात्रा करता और फिर अचानक से पानी के अंदर धंसने से लगता था जैसे कोई इंसान दलदल में धंसने लगता है।
जहाज में कोई सुराख, कोई भी नुकसान नहीं होता था। फिर भी जहाज़ पानी में तैरने के बजाय पानी के अंदर धसने लगता था।यहां पर एक प्रोफेशनल तैराक भी तैर नहीं पाता था। लगता था जैसे कोई अदृश्य शक्ति है जो सभी चीजों को अपने अंदर खींच रहा है।
ऐसे अजीबोगरीब घटनाओं के शिकार हुए जहाज़ में से ज्यादातर जहाज़ो को खोजा नहीं जा सका।वह समुद्र के किस हिस्से में चला गया यह आज तक एक राज़ है।जहाज़ और विमानों के साथ में घटित अजीबोगरीब घटनाओं के बाद वैज्ञानिक सोच रखने वाले भी र सुपर नेचुरल पावर जैसे बातों में विश्वास करने लगेगा। लेकिन वास्तविकता क्या है? यह जानना जरूरी है।
इस घटना की शुरुआत हुई 9 जुलाई 1945 से यूएस नेवी ने 10 क्रू मेंबर के साथ उड़ान भरी। जब यह प्लेन बरमूडा ट्राएंगल की तरफ जाने लगा तो अचानक ही इससे संपर्क टूट गया और फिर इस प्लेन के बारे में पता नहीं चल पाया।
इस घटना के 5 महीने बाद 5 torpedo bomber के एक ग्रुप ने उड़ान भरी और यह बरमूडा ट्राएंगल की चपेट में आ गया। लेकिन यह हादसा अपने पीछे की सबूत छोड़ गया।
उड़ान के तुरंत बाद ही अचानक से मौसम में बदलाव हुआ था। सारे विमान तूफान के चपेट में आ गया था। पर यह कैसे हुआ?कैसे अचानक मौसम में बदलाव आ गया?
इस सवाल का जवाब किसी के पास भी नहीं था पर कुछ सालों पहले नासा ने बरमूडा ट्राएंगल का फोटो प्रकाशित करते हुए कहा कि यह है hexagonal cloud के कारण होता है पर हेक्सागोनल क्लाउड्स के बारे में समझ पाना आम इंसानों के सोच से परे था।
अमेरिकी के वैज्ञानिकों का दावा
Bermuda Triangle के इस रहस्य को अमेरिकी के वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि बरमूडा ट्रायंगल में होने वाले हादसो के लिए 273 की रफ्तार से आने वाला तूफान सबसे बड़ी वजह है। इस नई तरह के तूफान को Air Bomb कहा जाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार Bermuda Triangle के ऊपर मौजूद हैं hexagonal clouds के आकार में फैले बादल जिसके कारण यहां तूफान आता है और समुद्र में ऊंची ऊंची लहरें उठने लगती है और जहाज़ या विमान समुद्र में डूब जाता है।Hexagonal Clouds किसे कहते हैं?
Hexagonal Clouds |
Hexagonal Clouds का एक विशेष Pattern है जो शनि ग्रह के उत्तरी ध्रुव पर पाएं जाने वाले बादलों से मिलता-जुलता है। बरमूडा ट्रायंगल पर मौजूद यह Hexagonal Clouds 32 किमी.से लेकर 88 किमी के दायरे में फैले हुए हैं। जैसे जब पृथ्वी पर तेज़ तूफान आता है तो बड़े बड़े पेड़ गिर जाते हैं। तेज़ हवा के कारण आदमी उड़ जाते हैं। ठीक उसके तरह अगर आसमान में 273 किमी प्रति घंटे के रफ्तार वाला एयर बाम फटता है तो आसमान में उड़ने वाले विमान और समुद्र में चलने वाले जहाज़ 45 फीट ऊंची लहरों की तरफ खिंचते चले जाते हैं।
पिछले सौ सालों में बरमूडा ट्रायंगल की वजह से एक हजार से भी अधिक लोगों की मौत हो चुकी है।सन1945 से 1965 के बीच बरमूडा ट्रायंगल में 8 विमान रहस्यमय तरीके से गायब हो चुके हैं।
Sunk plane in sea |
1 अक्टूबर 2015 को एक समुद्री जहाज के बरमूडा ट्रायंगल से गायब होने के एक महीने बाद इसका मलबा समुद्र की सतह से 15,000 फ़ीट की गहराई में मिला था। आज भी हर साल बरमूडा ट्रायंगल से औसतन 4 विमान और 20 समुद्री जहाज गायब हो जातें हैं। लेकिन वैज्ञानिकों ने जो थ्योरी दी है वह कई रहस्यों से पर्दा उठा सकता है।
बरमूडा ट्रायंगल हिंदू धर्म की मान्यताओं और पौराणिक कथाओं के अनुसार
जहां पूरी दुनिया इस रहस्यमई जगह के बारे में अभी तक किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाई है। वहीं हिंदू धर्म में वर्णित मान्यताओं और पौराणिक कथाओं के अनुसार वेदों में इसका उल्लेख मिलता है।कुछ मान्यताओं के अनुसार इसका संबंध हनुमान जी से हैं। हिंदू धर्म ग्रंथ रामायण में इस बरमूडा ट्रायंगल के बारे में उल्लेख मिलताहै।
एक कथा के अनुसार एक दैत्य ने इसी जगह पर हनुमान जी को मारने का प्रयत्न किया था।इसलिए इसे शैतानी टापू भी कहा गया है।
Lord Rama |
रामायण में बरमूडा त्रिभुज का ज़िक्र कुछ इस प्रकार मिलता है कि जब हनुमान जी माता सीता की खोज में समुद्र पार कर रहे थे, तो बहुत से राक्षसों ने उन पर आक्रमण किया था। लेकिन पवन पुत्र हनुमान जी ने साहस और पराक्रम से सभी का संहार कर विशाल समुद्र को पार किया था।
ऐसी ही एक पिशाचिनी सिंहिका या छायाग्रह का उल्लेख भी सुंदरकांड के 1 अध्याय में मिलता है। जिसके अनुसार छायाग्रह समंदर में रहने वाली विशाल पिशाचिनी थी जो किसी भी वस्तु को चाहेे वह कितनी भी बड़ी क्यों न हो उसे अपनी तरफ खींच लिया करती थी।
अपनी चमत्कारिक शक्तियों की सहायता से किसी भी चीज को उसकी परछाई पकड़ कर अपनी ओर खींच लेती थी और मार डालती थी।
सुंदर कांड के अनुसाार यह समुद्र मैं स्थित एक भयानक पर्वत के समान थी जो अपने दोनों हाथों से पकड़ कर किसी भी चीज को समुद्र में लेकर चली जाती थी।
इस कारण कोई भी समुद्र पार करने की हिम्मत नहीं कर पाता था।छायाग्रही ने हजारों वर्षों की तपस्या से ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया था और ऐसी शक्ति का वर मांगा था, जिसकी सहायता से किसी भी वस्तु या प्राणी को नियंत्रित करके उसे अपनी तरफ आकर्षित कर सके। चाहे वह कितना ही शक्तिशाली क्यों ना हो।
छायाग्रही नाम पड़ने का मुख्य कारण यही था कि किसी भी वस्तु को उसकी छाया या परछाई से नियंत्रित कर सकती थी।
सुंदरकांड के अनुसार जब हनुमान जी समुद्र को पार करते हुए लंका की ओर जा रहे थे, तभी उन्हें लगा कि कोई अदृश्य शक्ति है, जो उनकी शक्ति और गति को शिथिल करता जा रहा है। और उनके पराक्रम को कम करता जा रहा है।
हनुमान जी ने अपने चारों तरफ देखा और पाया कि समुद्र में एक भयानक और विशाल पिशाचिनी हैं जी ने उनकी परछाई को अपनी तरफ तेजी से खींच रही है हनुमान जी को खाने का प्रयास कर रही हैं।
तभी हनुमान जी को सुग्रीव जी की वह बात याद आई जिसमें उन्होंने इस भयानक पिशाचिनी का जिक्र किया था।जो किसी भी जीव जंतु की परछाई पर अपनी दृष्टि डालकर उसे लील लेती थी और अपना भोजन बना लेती थी। तभी हनुमान जी अपने विशाल स्वरूप से सूक्ष्म रूप में परिवर्तित हुए और उस विशाल पिशाचिनी के मुंह में समा जाते है। अपने नाखूनों से उसके मर्म स्थल फाड़ डालते हैं और अपने विराट स्वरूप में वापस आकर उसका वध कर देते हैं । उसके बाद हनुमान जी उसके मुंह से निकल कर वहां से आगे बढ़ जाते हैं।
इस घटना को देख वहीं मौजूद पिशाचिनी सिंहिका की पुत्री वहां से डरकर किसी दूसरे स्थान पर भाग जाती है। सिंहिका की तरह ही उसकी पुत्री भी चमत्कारिक शक्तियों के साथ किसी भी चीज को अपने ओर खींच लेती थी।
मान्यताओं के अनुसार बरमूडा ट्रायंगल ही वही जगह है जहां उसकी पुत्री रहस्यमई तरीके से गायब होने के बाद पहुंची थी। और वह यहां से गुजरने वाले बड़े-बड़े समुद्री जहाज एवं विमान को अपनी ओर खींच लेती है।
एक अन्य पौराणिक कथा में बरमूडा ट्रायंगल का उल्लेख रावण की मृत्यु के समय भी मिलता है। रावण भगवान शिव का परम भक्त था। शिव जी ने रावन की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे बहुत से वरदान भी दिए थे।
अमरत्व की प्राप्ति के लिए एक बार रावण ने भगवान ब्रह्मा की घोर तपस्या की थी। लेकिन रावण की इस कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर भी ब्रह्मा जी ने उसे अजर-अमर होने का वरदान नहीं दिया था। अपितु ब्रह्मा जी ने रावण को वरदान दिया था कि मनुष्य और वानर के सिवा दूसरा कोई भी जीवित प्राणी तुम्हारा वध नहीं कर पायेगा।
ब्रह्मा जी ने रावण के जीवन को उसकी नाभि में स्थित अमृतमणि में केंद्रित कर दिया था। इसकी वजह से उसका अंत तब तक नहीं हो सकता था जब तक उसकी इस मणि को उससे अलग ना कर दिया जाए।रावण को यह विश्वास था कि मनुष्य और वानर उसका अंत नहीं कर सकते इसलिए उसने ब्रह्मा जी का यह वरदान सहर्ष स्वीकार कर लिया।
भगवान शिव को रावण को मिले इस वरदान और अमृत मणि के बारे में ज्ञात था।रामायण में युद्ध के समय भगवान शिव ने साधु के भेष में रावण की पत्नी मंदोदरी से इस मणि को हासिल कर लिया था।
रावण के अलावा इस मणि के बारे मे रावन की पत्नी मंदोदरी और भाई विभीषण को पता था।युद्ध के अंत में जब रावण की मृत्यु असंभव प्रतीत हो रही थी। तब विभीषण ने श्री राम जी को उसकी इस अमृतमणि के बारे में बताया और साथ में यह भी बताया कि इसेे किसी साधारण शस्त्र से नही भेदा जा सकता हैं। उसे केवल अगस्त ऋषि के द्वारा दिए गए चमत्कारी बाण से ही भेदा जा सकता है, जिसकी रक्षा रावण की पत्नी मंदोदरी स्वयंं करती है। तत्पश्चात इस बाण को प्राप्त करने के लिए हनुमान जी युद्ध के मैदान से एक ज्योतिष के वेश में लंका जाते हैं।और वहां जाकर लोगों को उनका भविष्य बताते लगे।कुछ समय पश्चात यह बात पूरे लंका में फैल गई। रावण की पत्नी मंदोदरी तक भी यह बात गई तब उसने उत्सुकतावश उन ज्योतिष को अपनेे यहां बुलवाया। ज्योतिष बनेेे हनुमान जी मंदोदरी केेेे महल में जाते हैं और रावन से संबंधित कुछ आश्चर्यजनक बातें बताते हैं। जिसे जानकर मंदोदरी चकित हो गई। हनुमान जी किसी भी तरह मंदोदरी से उस बाण का पता लगाना चाहते थे।और वह अपनी दिव्य दृष्टि से इस बात का पता लगा लेते हैं।युद्ध में राम जी के द्वारा रावण की मृत्यु हो जाने परउसकी नाभि में स्थित अमृतमणि को हनुमान जी ने समुद्र की असीम गहराई में ले जाकर छिपा दिया था।
समुद्र में इतनी गहराई पर स्थापित होने के बाद भी इसमें इतनी शक्ति थी कि यह किसी भी चीज को अपनी तरफ खींच सकती थी। हिंदू मत के अनुसार यह उस मणि की असीम शक्तियां हैं जो उस क्षेत्र में प्रवेश करने वाले हर वस्तु और तैरने वाले चीजों को भी अपनी ओर खींच लेती है, और उन्हें समुद्र के गर्त में विलीन कर देती हैं।
कुछ मान्यताओं के अनुसार जहां यह मणि स्थित है उसी जगह को ही आज बरमूडा ट्रायंगल के नाम से जानते हैं।
No comments:
Post a Comment