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Tuesday, April 21, 2020

महर्षि वाल्मीकि

  महर्षि वाल्मीकि 



महर्षि वाल्मीकि फोटो
फोटो : महर्षि वाल्मीकि

भारत की पावन धरती पर अनेक ऋषियों एवं महापुरुषों ने जन्म लिया है। जिन्होंने इस धरती का यश पूरी दुनिया में फैला दिया है। ऋषियों और महापुरुषों की श्रेणी में एक महान नाम महर्षि वाल्मीकि जी का भी है।

वाल्मीकि को आदि कवि क्यों कहा गया?


 महर्षि वाल्मीकि आदि कवि के रूप में प्रसिद्ध हैं। आदिकवि दो शब्दों से मिलकर बना है जिसमें 'आदि' का अर्थ होता है प्रारंभ या प्रथम और 'कवि' का अर्थ होता है जो कविता या किसी काव्य का संग्रहण करे,उसकी रचना करें।

 वाल्मीकि को आदिकवि कहा गया क्योंकि उन्होंने सबसे पहले महाकाव्य की रचना की जो 'रामायण' के नाम से प्रसिद्ध है और यह रचना संस्कृत भाषा  में की गई।रामायण में 24,000 श्लोक हैं ।

 रामायण के पश्चात तुलसीदास जी ने अवधी भाषा में 'रामचरितमानस' की रचना की जो घर- घर में गाया और सुना जाने लगा ।

वाल्मीकि कौन थे?

पौराणिक कथा के अनुसार कहा जाता है कि ऋषि वाल्मीकि महर्षि कश्यप और अदिति के पोत्र थे।
इनके पिता का नाम वरुण (आदित्य)और माता का नाम था इनके भाई का नाम भृगु था। महर्षि वाल्मीकि का बचपन का नाम अग्नि शर्मा था। महर्षि वाल्मीकि ने ना केवल आदिकवि होने का गौरव प्राप्त किया, अपितु भारतीय ऋषियों में अत्यंत श्रेष्ठ स्थान पर प्रतिष्ठित हुए।

 उनके बारे में तुलसीदास जी ने लिखा है--


 उल्टा नाम जपत जग जाना ।
  वाल्मीकि भए ब्रह्म समाना ।।

यह कथन मानव को उन्नति की ओर अग्रसर होने के लिए कष्ट सहन और साधना हेतु संप्रेरित करता है।

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अब प्रश्न यह उठता है कि यदि यह महर्षि कश्यप के पुत्र थे तो यह क्यों कहा जाता है कि यह डाकू भी थे?

 इस विषय में कुछ किंवदंतियाँ हैं जिसके आधार पर यह कहा जाता है कि बचपन में ही इन्हें एक भीलनी चुरा कर ले जाती है और इनका लालन-पालन करती है। लेकिन वह अच्छे संस्कारों वाली नहीं थी।उसका काम चोरी करके अपना और  परिवार का जीवन यापन करना था । इसी कारण वाल्मीकि जी भी चोरी करना सीख जाते हैं और वह एक  डाकू रत्नाकर के नाम से प्रसिद्ध हो जाते हैं।

जब वाल्मीकि जवान हो गए तब भी लेने इनका विवाह अपने ही समुदाय की एक लड़की से कर दिया और जिससे उनकी कई संतानें भी हुई अपने परिवार का पालन पोषण करने के लिए इन्होंने डाका डालना,चोरी करना लूटपाट करना इन सभी को आधार बनाया।

एक बार लूटपाट के इरादे से ही वाल्मीकि जी जंगल में थे। और वहां से एक साधुओं की मंडली गुजर रही थी। वाल्मीकि ने उन साधुओं को लूटने की योजना बनाई और उन्हें रोककर हत्या करने की धमकी दी।

जब साधु  साधुओं ने पूछा कि तुम यह सब किस लिए कर रहे हो तब उन्होंने बताया कि वह यह सब अपने परिवार का पालन पोषण करने के लिए कर रहे हैं। तब साधुओं ने उत्तर दिया कि तुम जिनके लिए यह सब बुरे कर्म कर रहे हो क्या वह भी तुम्हारे इस बुरे कर्म के परिणाम के भागी बनेंगे।

 तब वाल्मीकि जी ने कहा उन्हें नहीं पता तो साधु ने कहा, अच्छा तुम्हें नहीं पता तो जाओ अपने घर जाओ और अपने परिवार  के सदस्यों से,अपनी पत्नी से, बच्चों से सभी से पूछ कर आओ। तब वाल्मीकि जी उन साधुओं को एक पेड़ से बांध देते हैं और साधुओं के कहे अनुसार वह अपने घर जाते हैं। और अपने पत्नी एवं बच्चों से पूछते हैं,कि वह जो कर्म कर रहे हैं इसका जो भी परिणाम होगा क्या वह भी उसके सहभागी बनेंगे ?

तब पत्नी ने उत्तर दिया कि "हम क्यों उसके सहभागी है।  हम सब का पालन पोषण करना आपका धर्म है ।आप कैसे कमाते हैं और इसमें क्या दोष लगता है,हमें इस से कोई मतलब नहीं।"
तुम अच्छे कर्म करो या बुरे कर्म करो जो भी तुम करोगे उसके भागी तुम स्वयं होंगे हम लोग उसके भागी नहीं होंगे।जब उन्होंने अपने बच्चे से पूछा तो बच्चों ने भी यही जवाब दिया।
 इस घटना से रत्नाकर अत्यंत क्षुब्ध हुआ। उसने  वापस जाकर साधुओं से क्षमा याचना की और उद्धार का मार्ग पूछा ।
रामनाम  का जप करने का उपदेश देकर साधु चले गए।

रत्नाकर उसी नाम का अखंड जप करने लगा। यद्यपि वह राम ना कह कर 'मरा-मरा' कहता रहा क्योंकि उसने जीवन भर यही किया था।उसने किसी एक को मारा और फिर दूसरे को। तपस्या में  वह इतना लीन हो गए कि उनके  शरीर पर दीमकों की बांबी बन गई । 13 वर्ष बाद जब उनकी कठिन तपस्या समाप्त हुई तब वह उस बांबी से निकले और इसी वजह से वह वाल्मीकि के नाम से विख्यात हुए।


वाल्मीकि जी ने रामायण की रचना किस प्रकार की?


महर्षि वाल्मीकि रामायण की रचना
फोटो
 महर्षि वाल्मीकि रामायण की रचना करते  हुए

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 कहा जाता है कि एक बार तमसा नदी के तट पर  वाल्मीकि जी स्नान के लिए जाते हैं।वहां पर वह पर क्रौंच पक्षी के जोड़े को निहार रहे थे जो प्रेमालाप में लीन था। तभी एक व्याध ने  क्रौंच पक्षी के जोड़े में से एक को मार दिया। पति की मृत्यु से विलाप करती क्रोंची को देखकर वाल्मीकि का हृदय करुणा से भर उठा और उनके मुख से सहसा यह श्लोक निःसृत हुआ।

मा निषाद प्रतिष्ठां त्वंमगमः शाश्वतीः समाः ।
यत्  क्रोौञ्चमिथुनादेकमवधीः काममोहितम् ।।

उक्त श्लोक को काव्य जगत की प्रथम रचना के रूप में स्वीकार किया जाता है। इसलिए महर्षि वाल्मीकि को आदि कवि के नाम से संबोधित किया जाता है। महर्षि वाल्मीकि ने मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के चरित्र को आधार मानकर संस्कृत में रामायण की रचना की जिसे बहुत  प्रसिद्धि मिली।


महर्षि वाल्मीकि 

 वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण एक ऐसा महाकाव्य है जिससे प्रभु श्री राम के जीवन काल का परिचय होता है। इस महाकाव्य में श्री राम की सत्य निष्ठा, पिता प्रेम और उनका कर्तव्य पालन, बड़ों की आज्ञा मानना, और छोटों को प्यार दुलार देना, सत्य और न्याय के धर्म पर चलने की प्रेरणा देना है। वाल्मीकि के आश्रम में ही सीता ने लव कुश को जन्म दिया। इन बालकों की संपूर्ण शिक्षा दीक्षा भी महर्षि वाल्मीकि द्वारा हुई।

महर्षि वाल्मीकि जयंती कब मनाई जाती है?

valmiki
    महर्षि वाल्मीकि जयंती 

 महर्षि वाल्मीकि  जयंती हर साल अश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इनकी जयंती बड़े ही हर्षोल्लास के साथ देशभर में मनाई जाती है। महर्षि वाल्मीकि जी ने 'रामायण' जैसे पवित्र ग्रंथ की रचना की जो हिंदू धर्म का पावन ग्रंथ माना जाता है। रामायण हर व्यक्ति के मन में रचा बसा है इसीलिए रामायण के रचनाकार महर्षि वाल्मीकि की जयंती बड़े धूमधाम के साथ मनाई जाती है।

 इनकी जयंती पर इनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धा सुमन अर्पित किए जाते हैं। कहीं-कहीं झांकियां भी निकाली जाती है।


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