राजा राममोहन राय का जीवन परिचय
Raja Ram Mohan Roy |
राजा राममोहन राय का जन्म कहां हुआ था?
राजा राममोहन राय का जन्म 22 मार्च सन 1772में बंगाल में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। 15 वर्ष की आयु में ही राजा राममोहन राय ने बंगाली, फारसी,अरबी व संस्कृत भाषा की शिक्षा प्राप्त की थी।आगे चलकर उन्होंने अंग्रेजी तथा हिंदू का भी ज्ञान प्राप्त किया। विभिन्न भाषाओं पर अपने इस अधिकार का सदुपयोग उन्होंने धर्मों का तुलनात्मक अध्ययन करने के लिए किया।
राजा राममोहन राय के धर्म संबंधी विचार
इस्लामिक तत्व ज्ञान हिंदू धर्म शास्त्र बौद्ध ग्रंथ व ईसाइयत के सिद्धांतों का उन्हें गहरा ज्ञान था।
Dr. V. P. Verma के अनुसार" इस पद्धति से उन्होंने धर्म दर्शन की विज्ञान का अध्ययन किया उस पर बुद्धिवादी दृष्टिकोण तथा उनके अपने श्रेष्ठ तथा उदार व्यक्तित्व की छाप थी ।"
एक और राजा राममोहन राय विवेकवाद, वैज्ञानिकवाद तथा मानवता में विश्वास रखते थे।दूसरी तरफ वह अपनी संस्कृति व धर्म से भी पूरी तरीके से बंधे हुए थे।
राजा राममोहन राय धर्म के क्षेत्र में उपयोगितावादी विचारों का अनुसरण करते थे। उन्होंने पूर्व और पश्चिम के धर्मों को मानव विवेक की कसौटी पर कसा तथा उनमें व्याप्त अंधविश्वासों और कुरीतियों की आलोचना भी की।
हिंदू धर्म में व्याप्त अंधविश्वास एवं कुरीतियों को दूर करने के लिए ही उन्होंने सन 1814 में आत्मीय सभा की स्थापना की तथा 1820 में Precepts of Jesus ग्रंथ की रचना कर न्यूज़ टेस्टामेंट की विवेकपूर्ण व्याख्या करने का प्रयास किया।
राजा राममोहन राय धर्म के क्षेत्र में अकबरकालीन विचारो को फिर से लाना चाहते थे। उनकी इच्छा थी कि इस्लाम, हिंदू और ईसाई तीनों धर्म आपस में मिलकर एक श्रेष्ठ धर्म की स्थापना करें ।
1827 में राजा राममोहन राय ने British India Uniterian Association की स्थापित की।
20 अगस्त 1828 को ब्रह्म समाज की नींव रखी गई तथा 2 वर्ष बाद ब्रह्म समाज की 23 जनवरी 1830 को विधिवत स्थापना हो गई।
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ब्रहम समाज की मान्यता
ब्रह्मसमाज ने एक ईश्वरी के सिद्धांत को माना और संदेश दिया। राजा राममोहन राय ने धर्म के साथ-साथ समाज के क्षेत्र में भी सुधार करने का प्रयास किया।
राजा राममोहन राय का समाजिक कुरीतियों को दूर करने में योगदान
सामाजिक क्षेत्र में उन्होंने विशेष रूप से अपना ध्यान महिला उत्थान पर केंद्रित रखा। उन्होंने सती प्रथा के विरोध में और नारी को उत्तराधिकार का अधिकार दिलाने के लिए पुस्तकों की रचना की ।उन्होंने बहु विवाह का विरोध किया तथा पुनर्विवाह का समर्थन किया।
राजा राममोहन राय जाति प्रथा के प्रति अत्यंत ही कठोर थे।
अंतरजातीय विवाह के समर्थक और जाति प्रथा का विरोध करते थे।उनका मानना था कि यदि लोग आपस में अंतर्जातीय विवाह करते है तो जाति प्रथा की जो भावना उनके मन में रची बसी है वह धीरे-धीरे दूर हो जाएगी और समाज से यह बुराई हट जाएगी।
समाज सुधार के क्षेत्र में उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि यह थी कि उन्होंने सती प्रथा पर प्रतिबंध लगाने के लिए कानून बनवाया।
शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में राजा राममोहन का योगदान
शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में भी राजा राममोहन का योगदान अतुलनीय था। उनका मानना था कि भारत का उत्थान विकास आधुनिक पाश्चात्य सभ्यता को अपनाकर ही संभव है।
दिसंबर 1823 में तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड एमहर्सट को उन्होंने लिखा था
"यदि अंग्रेजी संसद की यह इच्छा है कि भारत अंधकार में रहे तो संस्कृत शिक्षा में से उत्तम कुछ नहीं हो सकता है परंतु सरकार का उद्देश्य भारतीय लोगों को अच्छा बनाना है। इसलिए सरकार को एक उदारवादी शिक्षा का प्रसार करना चाहिए जिसमें गणित, दर्शन, रसायन शास्त्र, शरीर रचना व अन्य हितकारी विज्ञान आदि सम्मिलित हों।"
पाश्चात्य शिक्षा के इस समर्थन का तात्पर्य भारतीय ज्ञान के प्रति उनकी हीनता की भावना नहीं थी बल्कि यह था कि पाश्चात्य शिक्षा को अपनाकर हमारा देश भी उन्नति के मार्ग पर प्रशस्त हो सके। भारत की शिक्षा एवं सभ्यता के बारे में उन्होंने "बंगाल हरकारू'में प्रकाशित एक लेख में बड़े ही गर्व के साथ लिखाथा।
"इतिहास को देखने से हम सिद्ध कर सकते हैं कि संसार मेरे पूर्वजों का अधिक ऋणी है, ज्ञान के लिए, जो पूर्व में आरंभ हुआ।"
राजा राममोहन राय का शिक्षा के क्षेत्र में योगदान
राजा राममोहन राय ने डेविड हेयर के साथ मिलकर हिंदू कॉलेज की स्थापना कि और उन्होंने 1817 में इंग्लिश मीडियम स्कूल की कोलकाता में स्थापना की।
1825 में उन्होंने वेदांत कॉलेज की स्थापना की और यह सारी स्थापना उनकी शिक्षा के क्षेत्र में योगदान को बताते हैं।
राजा राममोहन राय का पत्रकारिता के क्षेत्र में योगदान।
भारत के प्रमुख राष्ट्रीय नेता राजा राममोहन राय ने पत्रकारिता के क्षेत्र में भी बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान दिया है। वह समाचार पत्रों की स्वतंत्रा के पक्षधर थे तथा जब कंपनी सरकार ने इस स्वतंत्रता पर रोक लगाई तो उन्होंने 1823 में प्रेस पर नियंत्रण को समाप्त करने के लिए संघर्ष भी किया।
1821 में उनके द्वारा बंगाल में 'संवाद कौमुदी' का तथा 1822 में फारसी में 'मेिरात उल अखबार' का प्रकाशन भी किया गया।
अंग्रेजी में उनके द्वारा 'ब्राह्मनीकल मैगजीन'का प्रकाशन किया गया। 1830 में द्वारकानाथ तथा प्रसन्न कुमार टैगोर का 'बंगदत्त'नामक बांग्ला पत्रिका के प्रकाशन करने में साथ दिया।
राजनीति के क्षेत्र में राजा राममोहन राय का योगदान
राजनीति के क्षेत्र में भी राजा राममोहन राय का योगदान अविस्मरणीय है।राजनीतिक क्षेत्र में राजा राममोहन राय उदारवादी थे। ब्रिटिश अंग्रेजों के साथ भारत का संबंध विच्छेद का विचार उनके दिमाग में नहीं था ।
उनका मानना था कि अंग्रेज जनता की भलाई करने के लिए भारत में आए हैं। राजा राममोहन राय ने अधिक से अधिक राजनीति व प्रकाशन के क्षेत्र में भारतीयों के हित में सुधार करने की बात कही।
वरिष्ठ सेवाओं का भारतीयकरण, कार्यपालिका और न्यायपालिका को एक दूसरे से अलग करना, मुकदमे की सुनवाई के लिए जूरी प्रथा को लागू करने की बात करना, न्याय के क्षेत्र में नस्ली भेदभाव का अंत तथा कृषकों को जमीदारी शोषण से मुक्ति दिलाने हेतु कदम उठाना यह उनके प्रमुख राजनीतिक सुधार कार्य थे।
इसके साथ ही राजा राममोहन राय का विश्वास जनवाद तथा अंतरराष्ट्रीयतावाद में था। उन्होंने प्रत्येक देश में जनवादी क्रांति का समर्थन किया ।
राजा राममोहन राय को भारत के नवजागरण का अग्रदूत क्यों माना जाता है?
विभिन्न क्षेत्रों में अपने योगदान के कारण ही राजा राम मोहन राय को भारत के नवजागरण का अग्रदूत, सुधार आंदोलन का प्रवर्तक एवं आधुनिक भारत का पहला महान नेता माना जाता है।
राजा राममोहन राय ने शिक्षा के क्षेत्र में, समाज के उत्थान के क्षेत्र में बहुत ही महान कार्य किए हैं। समाज में स्त्रियों की दशा अत्यंत दयनीय थी। उनकी दशा को सुधारने में भी उनका बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान है।
उनके लिए शिक्षा की व्यवस्था करना और सती प्रथा जैसी बुराइयों को हटाकर बहुविवाह जैसी प्रथाओं को शुरू करने में इनका बहुत ही विशेष योगदान है।राजनीतिक क्षेत्र में भी इनका योगदान बहुत ही महान है।
1964 में भारत सरकार ने राजा राममोहन राय के नाम पर एक डाक टिकट भी जारी किया।
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