मां चंद्रघंटा
मां चंद्रघंटा
मां भगवती का तीसरा रूप मां चंद्रघंटा है। माता ब्रह्मचारिणी के कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने माता से विवाह किया विवाह प्रांत माता के सिर पर अर्द्ध चंद्र बन गया जो कि एक घंटे की तरह प्रतीत होता है। इसी वजह से माता का नाम चंद्रघंटा पड़ा।चंद्रमा शांति एवं घंटा नाद का प्रतीक है। देवासुर संग्राम में देवी के घंटा नाद से अनेकानेक असुर काल के ग्रास बन गए. शास्त्रों में आराधना में नाद पर विशेष ध्यान दिया गया है। सुर एवं संगीत दोनों को ही वशीकरण का बीज मंत्र माना गया है। चंद्रघंटा देवी इसी की आराध्य शक्ति है। चंद्रमा शांति का प्रतीक है और घंटा नाद का। मां चंद्रघंटा नाद के साथ शांति का संदेश देती है।
माता का स्वरूप
माता चंद्रघंटा का रंग स्वर्ण के समान है। या माता के तीन नेत्र और दस हाथ हैं।और उनकी सवारी बाघ है तथा हाथ में कमंडल ,कमल ,त्रिशूल तथा गदा है ।माँ लाल वस्त्र धारण किये हुइ है और माता का एक अपने भक्तो देने की लिए वरदान मुद्रा में है। माता अपने भक्तो की परेशानियों को सहज ही दूर कर भक्तो की झोली खुशियों से भर देती है।
पूजा सामग्री
माता के पूजा सामग्री में लाल रंग का कपडा ,रोली,लाल फूल होने चाहिए। माता को भोग लगाने किसी मीठी
चीज का लगाना चाहिए। और गरीबों को यथा शक्ति दान देना चाहिए।
आराधना का महत्व
मां चंद्रघंटा भक्तों के काम के बीच आने वाली बाधाओं को नष्ट करती है।भक्तो के जीवन में खुशियाली लाकर जीवन को ऐश्वर्य से भर देती है।
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