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Sunday, August 23, 2020

FIR and Zero FIR

सामान्य FIR और  जीरो FIR किसे कहते है?
What is FIR and Zero FIR? 


What is FIR and Zero FIR

ईश्वर न करे कि कभी भी आपको थाना-पुलिस, कोर्ट-कचहरी के चक्कर में पड़ना पड़े। लेकिन यदि कभी सामना करना पड़ जाए तो इसके बारे में आपको सामान्य जानकारी होनी चाहिए। इस लेख में  हम आपको किसी भी अपराध के बाद होने वाली पहली कानूनी प्रक्रिया FIR (First Investigation Report) के बारे में जानकारी प्रदान करेंगे। और सामान्य FIR और  जीरो FIR किसे कहते है?
अपराध कितने प्रकार के होते हैं? 
Zero FIR दर्ज करना जरूरी क्यों  है?
इसकी भी  जानकारी प्रदान करेंगे। 


अपराध कितने प्रकार के होते हैं? 

 अपराध के दो प्रकार होते हैं :- संज्ञेय और असंज्ञेय। संज्ञेय   अपराध में गोली चलाना, हत्या, बलात्कार जैसे गंभीर अपराध आते हैं और असंज्ञेय में मामूली मारपीट,कम नुकसान वाली चोरी इत्यादि।
 असंज्ञेय अपराध में एफआईआर दर्ज नहीं की जाती है बल्कि मजिस्ट्रेट के पास शिकायत को भेज दिया जाता है और फिर वह आरोपी को समन जारी करता है वहीं संज्ञेय अपराध में एफआईआर दर्ज करना अनिवार्य होता है।

FIR किसे कहते है?

FIR को प्रथम सूचना रिपोर्ट (First Information Report) कहते हैं। जब घटित तकिसी अपराध की सूचना पुलिस अधिकारी को दी जाती है तो वह FIR कहलाती है।   भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 154 के तहत FIR की प्रक्रिया को पूरा किया जाता है। इसके जरिये ही पुलिस कानूनी प्रक्रिया को आगे बढ़ाती है।
 जब हम किसी अपराध की जानकारी पुलिस को खुद जाकर या फोन के जरिये  देते हैं तो उसे भी  प्रथम सूचना रिपोर्ट FIR (First Information Report) कहते हैं।

 आप जब FIR दर्ज कराते हैं  तो आपकी FIR एक संख्या के साथ लिखी जाती है जैसे 123/2020 इसका मतलब हैं  कि आपकी FIR उस थाने में सन 2020 में दर्ज हुई हैं और उसका नम्बर 123 हैं। यह सामान्य FIR कहलाती हैं। 

Zero FIR  किसे कहते हैं ?

जिस क्षेत्र में अपराध हुआ है उसी क्षेत्र के थाने में ही FIR दर्ज कराई जाती हैं। आपको बता दें कि पुलिस कारवाई अपने क्षेत्र अधिकार में करती है और अगर कोई क्षेत्र उनके अधिकार क्षेत्र के तहत नहीं होता है तो वह उस व्यक्ति को प्राथमिकी दर्ज करने से मना करके उसे उस क्षेत्र अधिकार वाले पुलिस स्टेशन में भेज देती है और फिर वहां प्राथमिकी दर्ज की जाती है है जाता है।
 लेकिन कानून के  तहत पुलिस को प्राथमिकी दर्ज करना अनिवार्य  होता हैं ।इसलिए जब कोई संज्ञेय अपराध के बारे में घटनास्थल से बाहर के पुलिस थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई जाती है तो उसे जीरो प्राथमिकी के तहत दर्ज किया जाता है। 

Zero FIR में  घटना की अपराध संख्या दर्ज नहीं की जाती है। जैसा कि हम जानते हैं कि हमारे देश की न्याय व्यवस्था के अनुसार, संज्ञेय अपराध होने की दशा में घटना की प्राथमिकी किसी भी जिले में दर्ज कराई जा सकती है। चूंकि यह मुकदमा घटना वाले स्थान पर दर्ज नहीं होता है इसलिए तत्काल इसकी संख्या नहीं दी जाती है। लेकिन जब यह उस घटना वाले स्थान पर स्थानांतरित किया जाता है, तब अपराध संख्या दर्ज कर ली जाती है।

यहीं आपको बता दें कि Zero FIR के जरिये थाने में शिकायत दर्ज करने के बाद  मामले की जांच शुरू कर दी जाती है ताकि सुबूतों को सूचीबद्ध किया जा सके।और अपराधी तक जल्दी पहुंचा जा सके।  यदि शिकायत को दर्ज नहीं  किया जाता हैं  तो सबूत नष्ट हो सकते हैं।
  Zero FIR हो या सामान्य एफआईआर दोनों केसों में शिकायत करने वाले का हस्ताक्षर करना,और FIR की काॅपी प्राप्त करना अनिवार्य कानूनी प्रावधान है।

Zero FIR कब और कैसे करते हैं? 


संभीज्ञेय अपराध जैसे हत्या, रेप, एक्सीडेंट इत्यादि कहीं भी किसी  जगह हो सकते हैं।इसलिए ऐसे प्रकरण में तुरंत कार्यवाही की मांग होती है लेकिन बिना एफआईआर के कानून भी कुछ नहीं कर सकता है। इसलिए ऐसे मौकों में चश्मदीद गवाह और उनसे संबंधित जानकारियों के साथ निकटतम पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज करवा सकते हैं।
 जब आप लिखित शिकायत करते हैं  तो एक एफआईआर की एक कॉपी को अपने पास रखिए। जब FIR को दर्ज कर दिया जाता है तो पुलिसवालों की ड्यूटी होती है कि उस पर कार्यवाही करे। आपको पता होना चाहिए कि कोई भी पुलिस वाला सिर्फ यह  कहकर  'कि अपराध की  घटना उसके अ अधिकार क्षेत्र से बाहर घटित हुई है' आपकी एफआईआर लिखने से  मना नहीं कर सकता है ।

जिस प्ररकार सामान्य  FIR लिखी जाती है वैसे ही Zero FIR भी। यह भी लिखित या मौखिक दोनों तरह से किया जा सकता है। आप पुलिस वाले को रिपोर्ट पढ़कर सुनाने का अनुरोध भी कर सकते हैं। 

Zero FIR दर्ज करना जरूरी क्यों  है?


किसी अपराध के होने पर उसकी FIR करवाना बहुत ही जरूरी होता है  यदि FIR घटित क्षेत्र से  दूसरे क्षेत्र में की जाती है तब भी इसका फायदा  होता है ।इससे यह साबित होता है कि अपराध हुआ है। प्राथमिकी पीड़ित व्यक्तिि के अलावा उसकी किसी संबंधी एवं चश्मदीद गवाह केे द्वारा भी लिखा सकते हैं।ऐसे में पीड़़ित की अनुपस्तिथि में भी दोषी के खिलाफ कार्रवाई होती है और शिकायतकर्ता को मुख्य गवाह व मान कर कार्रवाई की जाती है।

अगर किसी दोषी व्यक्ति का पुलिस पर किसी किस्म का दबाव है और वह काफी प्रभावशाली है तो ऊपर किसी दूसरे क्षेत्र में जाकर भी उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज करवा सकते हैं।

घटना स्थल को छोड़ने के बाद भी दूर रहकर आप दोषी के खिलाफ कार्रवाई कर सकते हैं।

 किसी दूसरे के साथ अगर कोई अपराध हुआ है तो आप उसको इन्साफ दिलवाने  में उसकी सहायता कर सकते हैं जो मानवता का ही एक रूप है।

क्या आप जानते हैं कि यदि कोई भी पुलिस अधिकारी जीरो प्राथमिकी दर्ज करने से मना करता है तो उसके खिलाफ विभागीय कारवाही होती है और कोर्ट में केस डालने पर भी कानूनी कार्रवाई भी होती है।

 FIR किस प्रकार दर्ज होती हैं ?

FIR दर्ज कराने के लिए आपको खुद से भी जाने की जरूरत नहीं है। घटना पर मौजूद कोई भी चश्मदीद गवाह या पीड़ित का कोई संबंधी  भी FIR दर्ज करा सकते है। आप फोन के द्वारा या ई-मेल के आधार ऑनलाइन भी थाने में FIR दर्ज करा सकते है। 
FIR में घटना की तारीख और समय और आरोपी का भी उल्लेख करना होता है। एफआईआर दर्ज होने के बाद शिकायतकर्ता को इसकी मुफ्त में एक प्रति पाने का अधिकार होता है। एफआईआर में लिखा क्राइम नंबर भविष्य में रेफरेंस के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। एफआईआर की कॉपी पर थाने की मुहर व पुलिस अधिकारी के साइन होने चाहिए।

हमे आशा हैं  कि इस लेख से आप  जान गए होंगे कि जीरो FIR,सामान्य FIR क्या होती है, कैसे दर्ज की जाती है और यह जरुरी क्यो है ?

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