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Monday, October 12, 2020

गांगेय डॉल्फिन - Ganges Dolphin

 गांगेय डॉल्फिन - Ganges Dolphin 


Ganges Dolphin


डॉल्फिन
 मूल रूप से समुद्र के खारे पानी में ही पाई 
जाती हैं परंतु इसकी कुछ प्रजातियां ऐसी हैं जो मीठे पानी जैसे नदियों के पानी में पाई जाती है। पिछले कुछ वर्षों तक 88 प्रजातियों में से 4 प्रजातियां नदियों की मीठे पानी में पाई जाती थी परंतु वर्तमान समय में इनमें से केवल तीन ही प्रजातियां बची रह पाई है।

डॉल्फिन किन नदियों में पाई जाती हैं? 

  डॉल्फिन, गंगा के अलावा सिंधु, अमेजन नदियों में भी पाई जाती हैं, जिसे भुलन और बोटा के नाम से जाना जाता है। गंगा में पाए जाने वाले डॉल्फिन को गांगेय डॉल्फिन के नाम से जाना जाता है। यह हमारा राष्ट्रीय जलीय जीव भी है ।

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गांगेय डॉल्फिन की क्या विशेषताएँ हैं? 


वर्ष 1996 में गंगा डॉल्फिन को लुप्तप्राय प्राणी घोषित किया गया था। इसके बावजूद इसके संरक्षण के लिए कोई गंभीर प्रयास नहीं किए गए। गांगेय डॉल्फिन एक बहुत ही जुझारू जीव  है। यह अपने प्रतिकूल माहौल में भी जीने की क्षमता रखती है। तापमान में होने वाले उप बड़े उतार-चढ़ाव के साथ यह आसानी से सामंजस्य बैठा लेती है।

 आमतौर पर यह गंगा और उसकी सहायक नदियों के संगम पर पाई जाती है ताकि मुश्किल की घड़ी में यह सहायक नदियों को अपना बसेरा बना सके गंगा नदी में पानी कम होने पर यह सहायक नदियों में अपना अस्थाई घर बनाती है। गांगेय डॉल्फिन को छिछले पानी एवं संकरी चट्टानों में रहना बिल्कुल पसंद नहीं है। 


गांगेय डॉल्फिन का प्रचलित नाम क्या है ?


गंगा नदी में पाए जाने वाले डॉल्फिन का प्रचलित नाम सोंस है ।

Ganges Dolphin 


 मादा गांगेय डॉल्फिन


मादा गांगेय डॉल्फिन की नाक एवं शरीर की लंबाई अधिक होती है। एक व्यस्क गांगेय डॉल्फिन का वजन 70 से 100 किलोग्राम होता है। मादा डॉल्फिन के गर्भधारण अवधि 9 महीने की होती है और वह एक बार में एक बच्चे को जन्म देती है ।


गांगेय डॉल्फिन का वर्तमान निवास स्थान कहाँ हैं? 


वर्तमान समय में गांगेय डॉल्फिन भारत के गंगा, ब्रह्मपुत्र, मेघना, बांग्लादेश के करनाफुली, सांगू और नेपाल के करनाली व सप्तकोशी नदी में निवास करती हैं। पहले गांगेय डॉल्फिन  नदियों के सभी भागों में विचरण करती थी, लेकिन नरौरा, फरक्का और बिजनौर में बैराज बनने के कारण इनका घर तीन हिस्सों में  बंट गया।  बैराज में गंगा नदी को निचले, मध्य और अग्र भागों में बांट दिया है। जिसकी वजह से गांगेय डॉल्फिन  के लिए गंगा के एक हिस्से से दूसरे हिस्से तक जाना मुश्किल हो गया है।


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गांगेय डॉल्फिन की संख्या कम होने का कारण

नरोरा परमाणु संयंत्र एवं कानपुर के कारखानों से निकलने वाले रासायनिक कचरे के गंगा में प्रवाहित होने से उसके निचले भाग जैसे नरोरा और कानपुर के आसपास रहने वाली गांगेय डॉल्फिन धीरे-धीरे मर गई।गंगा में उर्वरक, कीटनाशक,औद्योगिक एवं घरेलू कचरे का  निस्तारण तेजी से हो रहा है जिसके कारण गांगेय डॉल्फिन  की आयु कम होती जा रही है। गांगेय डॉल्फिन को बचाने के लिए ठोस प्रयास की आवश्यकता है, इस पर सरकार को ध्यान देना चाहिए।

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