Crisis for Sparrow :- आखिर क्यों छोटी चिड़िया, गौरैया (sparrow) के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा हैं?
घर के आंगन एवं छत पर देखी जाने वाली छोटी चिड़िया जिसे गौरैया (sparrow) के नाम से जाना जाता है आज अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रही है। यदि बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी के पक्षी वैज्ञानिको की मानें तो हमारी बदलती जीवन शैली के कारण उनके आवासीय स्थान नष्ट हो जाने से गौरैया का अस्तित्व संकट में पड़ गया हैं। ऐसा लगता है कि गौरैया के बिना आज घर का आंगन सूना है।
इस लेख में हम गौरैया (sparrow) से संबंधित महत्वपूर्ण बातें जैसे विश्व गौरैया दिवस कब मनाया जाता है? गौरैया की क्या विशेषताएं हैं?उसकी प्रजातियां ?उसकी संख्या में कमी होने के कारण आदि बातों पर आपका ध्यान केंद्रीय करने की कोशिश करेंगे।
विश्व गौरैया दिवस कब मनाया जाता हैं
20 मार्च को विश्व गौरैया (sparrow) दिवस मनाया जाता हैं।
गौरैया की क्या विशेषताएं हैं?
छोटे कीड़े और बीजों के ऊपर निर्भर रहने वाली गौरैया 4.5 इंच से 7 इंच के बीच लंबी और 13.4 ग्राम से 42 ग्राम के करीब वजन वाली कार्डेटा संघ और पक्षी वर्ग के चिड़िया है। इसका रंग भूरा- ग्रे, पूँछ छोटी और चोंच मजबूत होती है।
ग्रामीण परिवेश में गौरैया (sparrow) की आवश्यकता के अनुसार परिस्थितियां होने के कारण यदा-कदा उसके दर्शन हो पाते हैं। लेकिन महानगरों में उसके दर्शन दुर्लभ है।
भारतीय उपमहाद्वीप में गौरैया की प्रजातियां
भारतीय उपमहाद्वीप में इसकी हाउस स्पैरो स्पेनिश स्पैरो, सिंध स्पैरो, डैड-सी या अफगान स्क्रब स्पैरो, यूरेशियन स्पैरो और रसेट या सिनेमन स्पैरो ये 6 प्रजातियां पाई जाती हैं।
गौरैया (sparrow) घरेलू चिड़िया है जो लोगों के आस-पास ही रहना पसंद करती है। हमारी घरेलू गौरैया यूरेशिया में पेड़ों पर पाए जाने वाले गौरैया से काफी मिलती है।
घरेलू गौरैया को छोड़कर अन्य सभी कटिबंधीय और समशीतोष्ण क्षेत्रों में पाई जाती हैं। खुद को परिस्थितियों के अनुकूल बना लेने वाली गौरैया की तादाद आज भारत ही नहीं, यूरोप के कई बड़े देशों तथा ब्रिटेन, इटली, फ्रांस, जर्मनी में तेजी से घट रही है। नीदरलैंड में तो इसे दुर्लभ प्रजाति की श्रेणी में रखा गया है।
गौरैया कहाँ का राजकीय पक्षी हैं?
गौरैया राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली का राजकीय पक्षी है
गौरैया का अस्तित्व संकट में पड़ने के कारण निम्नलिखित हैं:-
बहुमंजिला इमारतों का निर्माण
महानगरों में बहुमंजिला इमारतों की भरमार होती हैं जिसका गौरैया के अस्तित्व को खतरे में डालने में अहम योगदान है।इसका कारण यह हैं कि गौरैया (sparrow) 20 मीटर से अधिक ऊंचाई पर उड़ नहीं पाती हैं । अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ भी इसकी पुष्टि करता है।
खेतों में कीटनाशकों का छिड़काव
गौरतलब है कि गौरैया (sparrow) की घटती तादाद के पीछे खेतों में कीटनाशकों का छिड़काव भी प्रमुख कारण है। कीटनाशकों के चलते खेतों में छोटे पतले कीड़े जिसे आम भाषा में सुंडी कहते हैं मर जाते है। गौरैया जन्म के समय अपने बच्चे को यह छोटे कीड़े मकोड़े खिलाती है। खेतों में कीटनाशकों का छिड़काव के कारण कीड़े मकोड़े मिल नहीं पाते हैं।
मिट्टी एवं मैदानी इलाकों की कमी
रंजीत डेनियल के अनुसार, गौरैया (sparrow) मिट्टी स्नान करती है। शाम को सोने से पहले जमीन में छोटे आकार का एक गड्ढा खोदकर उसमें धूल से नहाती है। इससे उसके पंख साफ रहते हैं और उनमें रहने वाले कीट परजीवी मर जाते हैं।
महानगरों में पक्की सड़कों एवं बड़ी बड़ी बिल्डिंग के कारण मैदानी इलाके ना के बराबर होते हैं जिसके कारण शहरों में उसे धूल नहीं मिल पाती।
पर्याप्त भोजन प्राप्त ना होने के कारण
मानवीय गतिविधियों और रहन-सहन में हुए बदलावों के चलते उसे ना तो शहरों में भोजन आसानी से मिल पाता है और ना वह आधुनिक किस्म के मकानों में घोसले बना पाती हैं। शहरों में बने मकानों में उसे भोजन ढूंढना बहुत मुश्किल होता है। शहरों में मैदानी इलाके कम होने के कारण मिट्टी में पाए जाने वाले छोटे कीड़े मिल नहीं पाते हैं। यही कारण है कि गौरैया (sparrow) शहरों से दूर हो गई है और उसकी तादाद दिनोंदिन घटती जा रही है।
आज सरकार भी पशु पक्षियों के प्रति संवेदनशील नहीं हैं। उसके पास इनकी संख्या से संबंधित कोई जानकारी नहीं है। देखा जाए तो गौरैया को बचाने हेतु किए गए सभी प्रयास नाकाम साबित हुए हैं। केवल 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाने से कुछ नहीं होने वाला।
"Help house sparrow" के नाम से समूचे विश्व में चलाए जा रहे अभियान को लेकर भी सरकार मौन है। यदि सरकार का रवैया ऐसा ही रहा तो आने वाले समय में हम गौरैया के बारे में सिर्फ बातें ही कर पाएंगे उसे देख नहीं पाएंगे।
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