विरुपाक्ष शिव मंदिर (Virupaksh Shiv Temple)- Karnataka
विरुपाक्ष शिव मंदिर
भारत देश हिंदू देवी तथा देवताओं से संबंधित मंदिरो के लिए प्रसिद्ध हैं।यहाँ प्रत्येक राज्य में आपको विभिन्न देवी तथा देवताओं से संबंधित मंदिर आसानी से मिल जाएंगे। यह मंदिर धर्म तथा कला दोनों ही दृष्टि से विश्व प्रसिद्ध हैं।
इन्ही मंदिरो में एक मंदिर विरुपाक्ष शिव मंदिर हैं जो कर्नाटक के हम्पी में हैं।ये मंदिर उत्तरी कर्नाटक के बेल्लारी जिले में स्थित भारत के प्रसिद्ध ऐतिहासिक मंदिरों में से एक है।यह माना जाता है कि जिस किष्किंधा का वर्णन रामायण में मिलता हैं वह कर्नाटक के हम्पी ही है।
विरुपाक्ष शिव मंदिर का इतिहास
विरुपाक्ष शिव मंदिर का इतिहास प्रसिद्ध विजयनगर साम्राज्य से जुड़ा है। विरुपाक्ष मंदिर विक्रमादित्य द्वितीय की रानी लोकमाह देवी द्वारा बनवाया गया था।यह मंदिर द्रविड़ स्थापत्य शैली में बना है। इस शैली में ईंट और चूने का इस्तेमाल किया जाता हैं । विरुपाक्ष शिव मंदिर को यूनेस्को में राष्ट्रीय धरोहरों केे रूप में मान्यता प्राप्तहै।
विरुपाक्ष शिव मंदिर की विशेषता
तुंगभद्रा नदी के दक्षिणी किनारे पर हेम कूट पहाड़ी की तलहटी पर स्थापित विरुपाक्ष शिव मंदिर की मुख्य विशेषता यह हैं कि यहाँ शिवलिंग दक्षिण की ओर झुका हुआ है। और इसका गोपुरम 50 मीटर ऊँचा हैं । इस गोपुरम का निर्माण कृष्णदेव राय ने करवाया था।मंदिर के पास छोटे-छोटे और मंदिर हैं जो कि अन्य देवी देवताओं को समर्पित हैं।
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विरुपाक्ष शिव मंदिर से जुड़ी कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार रावण की तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने रावण को एक शिवलिंग दिया और कहा इसे ले जाकर तुम अपने राज्य में स्थापित कर दो परंतु याद रहे अगर यह शिवलिंग एक बार भी जमीन पर रख देंगे तो यह वही स्थापित हो जाएगा।रावण इस शिवलिंग को लेकर लंका जा रहा था तो यहां पर वह स्नान करने के लिए रुका था। और वह आते हुुए एक बुड़े आदमी को शिवलिंग पकड़ने के लिए देतेे हैं।वह आदमी कुुछ देर बाद उस शिवलिंग को जमीन पर रख देता हैं।रावण जब यह देखता हैं तो बहुत दुखी होता हैं और वह शिवलिंग को पुनः उठाने की कोशिश करता हैं लेकिन वह शिवलिंग यहीं जम गया और लाख कोशिशों के बाद भी नहीं हिला।
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दीवारों पर चित्रों के जरिये प्रसंगो को दर्शाया गया हैं।
मंदिर की दीवारों चित्रकारी की गई हैं जिसे इस कथा से संबंधित कुछ प्रसंगो को दर्शाया गया हैं।
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