कोणार्क सूर्य मंदिर- उड़ीसा (Konark Sun Temple- Orissa)
लगभग 35 किमी उत्तर पूर्व में स्थित है। इसका निकटतम हवाई अड्डा भुवनेश्वर हवाई अड्डा है।
कोणार्क मंंदिर हिंदू सूर्य देवता को समर्पित है इसलिए इसे 12 पहियों वाले एक विशाल पत्थर के रथ के रूप में बनाया गया था। कोणार्क सूर्य मंदिर का निर्माण A.D.1250 में पूर्वी गंगा राजा नरसिम्हदेव -1 के शासनकाल में सूर्य देवता को समर्पित एक विशाल अलंकृत रथ के रूप में हुआ था।
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इस मंदिर को यूनेस्को द्वारा 1984 ई में विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था। कोणार्क मंंदिर के कई भाग अब खंडहर हो चुके हैं, लेकिन फिर भी यह मंंदिर पर्यटकों और हिंदू तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता हैं।
कोणार्क सूर्य मंदिर की वास्तुकला
कोणार्क हिंदू मंदिर वास्तुकला के उत्कृष्ट रूप का एक उदाहरण है।इस मंदिर योजना में एक हिंदू मंदिर के सभी पारंपरिक तत्व शामिल हैं जो एक वर्ग योजना पर आधारित हैं। ।
कोणार्क मंंदिर में एक मूर्ति में सूर्य देवता को सात घोड़ों द्वारा खींचे गए रथ में आकाश में तेजी से यात्रा करते हुए दिखाया गया है।वह अपने दोनों हाथों में कमल का फूल लिए हुए हैं।उनका सारथी अरुणा हैं । उनके रथ के सात घोड़ों के नाम हैं: गायत्री, बृहती, उषनी, जगती, त्रिशुभा, अनुशुतुभा और पंक्ति।
कोणार्क मंदिर में 24 पहिए हैं जो बहुत बड़े और नक्काशीदार पत्थर के हैं।जिनका व्यास लगभग 12 फीट (3.7 मीटर) हैं। इसे सात घोड़ों के द्वारा खींचते हुए दर्शाया गया हैं।इन पहियों के द्वारा धूप-घड़ी का काम लिया जाता हैं मतलब इनकी छाया से समय का अनुमान लगाया जाता है।
इसके प्रवेशद्वार पर शेरों और हाथियों की मूर्तियां बनी हैं। कोणार्क का मुख्य मंदिर, जिसे वहाँ की स्थानीय भाषा में देउल कहा जाता है, एक उच्च छत पर बनाया गया था। परन्तु वर्तमान समय में यह मौजूद नहीं है। कोणार्क मंदिर मूल रूप से मुख्य अभयारण्य से युक्त एक परिसर था, जिसे रेखा देउल, या बड़ा देउल (बड़ा अभयारण्य) कहा जाता था।
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कोणार्क सूर्य मंदिर की स्थापना से संबंधित कथा
सांब ने पिता के आदेशानुसार कोणार्क जाकर सूर्य की अराधना की। उनकी अराधना से खुश होकर सूर्य देव ने उन्हें चंद्रभागा नदी में स्नान करने को कहा। शुक्ल पक्ष सप्तमी को स्नान के दौरान उन्हें कमल के पत्ते पर सूर्य की मूर्ति दिखाई पड़ी। उन्होंने उस मूर्ति को एक मंदिर में रख कर ब्राह्मणों की सहायता से उसमें प्राण प्रतिष्ठा करवाई। इस तरह उन्हें अपने पिता श्रीकृष्ण के शाप से मुक्ति मिल गई।तभी सेे हर साल शुक्ल पक्ष सप्तमी को लोग वहां सूर्यदेव का पूजन करने आते हैं।
कोणार्क सूर्य मंदिर में भ्रमण का समय
कोणार्क सूर्य मंदिर भ्रमण का सबसे अच्छा समय नवंबर से मार्च के बीच होता है। इस समय यहां ज्यादा सर्दी नहीं पड़ती। आप फ्लाइट द्वारा भुवनेश्र्वर तक पहुंचकर वहां से बस और ट्रेन द्वारा आसानी से कोणार्क पहुंच सकते है।
कोणार्क के अन्य दर्शनीय स्थल एवं बाजार
कोणार्क के बाजार में आपको हैंडलूम के कपड़े और हस्तशिल्प से बनी सजावटी वस्तुएं,सीपियों से बने सुंदर आभूषण नजर आएंगी जो आपका और यहां आने वाले पर्यटकों का मन मोह लेती हैं।
कोणार्क का सुरम्य प्राकृतिक वातावरण आपका मन मोह लेगा। कोणार्क सूर्य मंदिर के अतिरिक्त यहाँ जगन्नाथपुरी मंदिर, चिल्का झील, भीतरकानिका नेशनल पार्क, उदयगिरी की गुफाएं और महेंद्रगिरी पर्वत जैसे कई ऐतिहासिक स्थल मौजूद हैं।
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