History of Subhash Chandra Bose:- सुभाष चंद्र बोस का इतिहास
सुभाष चंद्र बोस जिन्हें नेताजी के नाम से पुकारा जाता है। यह राष्ट्रीय आंदोलन के सर्व प्रमुख नायकों में से एक हैं।
पारिवारिक परिचय
23 जनवरी 1897 के दिन स्वतंत्रता आंदोलन के महानायक सुभाषचंद्र बोस का जन्म कटक (उड़ीसा)के प्रसिद्ध वकील जानकी नाथ तथा प्रभावती देवी के यहां हुआ।
शिक्षा
बोस एक सम्पन्न परिवार से थे इसलिए उन्हें अच्छी शिक्षा दीक्षा प्राप्त हुई थी।
साल 1919 में वे भारतीय प्रशासनिक सेवा की तैयारी के लिए इंग्लैंड पढ़ने गए।
1920 में सुभाषचंद्र बोस ने भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में चौथा स्थान हासिल किया।
विवाह
नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने साल 1937 में अपनी सेक्रेटरी और वियना की युवती ऐमिल शेंकल से बैजस्टीन में शादी की थी। दोनों की एक बेटी अनीता हुई, और वर्तमान में वो जर्मनी में अपने परिवार के साथ रहती हैं।
देश प्रेमी के रूप में आंदोलनकारी
21 वर्ष की आयु में 1920 में भारतीय नागरिक सेवा आईसीएस के सदस्य चुने गए किंतु असहयोग आंदोलन में भाग लेने के लिए उन्होंने इस से त्यागपत्र दे दिया।
वह शीघ्र ही देशबंधु चितरंजन दास के सहायक बन गए तथा उनके द्वारा चलाए जा रहे नेशनल कॉलेज के प्रिंसिपल के रूप में कार्य किया।
1920 में महात्मा गांधी द्वारा शुरू किए गए असहयोग आंदोलन में उन्होंने पूरी शक्ति लगा दी। किंतु चौरीचौरा की छोटी सी घटना के कारण महात्मा गांधी द्वारा असहयोग आंदोलन वापस लेने से बहुत नाराज हुए।
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इसके बाद उन्होंने स्वराज दल के काउंसिल प्रवेश कार्यक्रम का समर्थन किया जिससे विधान मंडलों के माध्यम से ब्रिटिश सरकार से संघर्ष जारी रखा जा सके।
जब चितरंजन दास कोलकाता के मेयर बने तब सुभाषचंद्र बोस को कोलकाता कारपोरेशन का मुख्य कार्यकारी अधिकारी चुना गया किंतु ब्रिटिश सरकार ने शीघ्र ही उन्हें गिरफ्तार करके मांडले भेज दिया। दिसंबर 1921 में प्रथम बार कारावास का दंड मिला। मांडले जेल में रहते हुए उन्हें बंगाल विधान परिषद का सदस्य चुन लिया गया।
उनका विचार था कि भारत के राष्ट्रीय आंदोलन का लक्ष्य अधिराज स्थिति नहीं वरन पूर्ण सफलता होनी चाहिए। वे ऑल इंडिया यूनियन कांग्रेस यूथ कांग्रेस के सभापति थे। गांधी जी के साथ सुभाष चंद्र बोस के मतभेद सैद्धांतिक थे व्यक्तिगत नहीं।
कांग्रेस का अध्यक्ष चुना जाना
1938 में सुभाष चंद्र बोस को कांग्रेस के हरिपुरा अधिवेशन में अध्यक्ष चुना गया। 1939 में महात्मा गांधी से मतभेद होने के कारण उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन किया।
आजाद हिंद फौज की स्थापना
1941 उन्होंने भारत छोड़ दिया और जर्मनी चले गए। उन्होंने सरकार और भारतीय जनता से अपील की कि वे अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालने के लिए तैयार हो जाएं।
8 फरवरी 1943 को सुभाषचंद्र बोस ने जर्मनी छोड़ा और 13 जून को टोक्यो पहुंचे। 4 जुलाई 1943 को सुभाष इंडिपेंडेंस लीग के अध्यक्ष व आजाद हिंद फौज के सर्वोच्च सेनापति बने।
उसके बाद उन्होंने सेना को 'दिल्ली चलो', 'जय हिंद','तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा' का नारा दिया।
21 अक्टूबर 1943 ईस्वी को आजाद हिंद सरकार का विधिवत उद्घाटन हुआ। आजाद हिंद सरकार द्वारा तिरंगा राष्ट्रीय ध्वज के रूप में, जय हिंद अभिवादन के रूप में, टैगोर की कविता राष्ट्रगान के रूप में स्वीकृत की गई।
सुभाष चंद्र बोस ने गांधी जी को 'राष्ट्रपिता' कहा
6 जुलाई 1944 को आजाद हिन्द रेडियो पर अपने भाषण के माध्यम में इन्होंने गांधी जी को महात्मा कहकर संबोधित किया और आज़ाद हिन्द फौज की स्थापना के उद्देश्य के बारे में बताया।
विवादित मृत्यु
ऐसा माना जाता है कि 18 अगस्त 1945 में एक विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु ताईवान में हो गयी परंतु उसका दुर्घटना का कोई साक्ष्य नहीं मिल सका। सुभाष चंद्र की मृत्यु आज भी विवाद का विषय है।
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