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Sunday, August 16, 2020

Panchayati Raj System

पंचायतीराज व्यवस्था Panchayati Raj System

Panchayati Raj system
Panchayati Raj System 


भारत के मूल संविधान में भाग-9 के अंतर्गत अनुच्छेद 243 में  पंचायती राज से संबंधित उपबंधों की चर्चा की गई है । भाग-9 में ‘पंचायतें’ नामक शीर्षक के तहत अनुच्छेद 243-243ण तक पंचायती राज से संबंधित उपबंध हैं।

 पंचायती राज व्यवस्था का इतिहास 
 भारत में पंचायती राज व्यवस्था की स्थापना एकदम से नहीं हुई है इसकी पृष्ठभूमि काफी समय से तैयार हो रही थी।

भारत में स्थानीय स्वशासन का जनक किसे माना जाता हैं? 

भारत में स्थानीय स्वशासन का जनक लॉर्ड रिपन 'को माना जाता है। वर्ष 1882 में उन्होंने स्थानीय स्वशासन से संबंधित प्रस्ताव दिया जिसे स्थानीय स्वशासन संस्थाओं के ना मैग्नाकार्ता ने कहा। वर्ष 1919 के भारत शासन अधिनियम के तहत प्रांतों में दोहरे शासन की व्यवस्था की गई और स्थानीय स्वशासन को हस्तांतरित विषय सूची में रखा गया। वर्ष 1935 के भारत शासन अधिनियम के तहत इसे और व्यापक व मजबूत बनाया गया।

स्वतंत्रता  प्राप्ति के पश्चात् भारत में लोकतांत्रिक राज्य की स्थापना की गई। लोकतांत्रिक राज्य की अवधारणा को सिद्ध करने के लिए पंचायती राज व्यवस्था की स्थापना एक बहुत ही महत्वपूर्ण कदम था। 


पंचायती राज व्यवस्था भारत में लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण को बढ़ावा देने के लिए एक प्रयास था। 

भारतीय संविधान में राज्य के नीति निदेशक तत्वों के अंतर्गत कहा गया है कि राज्य ग्राम पंचायतों पर संगठन करने के लिए कदम उठाएगा एवं उनको ऐसी शक्तियां और अधिकार प्रदान करेगा जो उन्हें स्वायत्त शासन की इकाई के रूप में कार्य करने योग्य बनाने के लिए आवश्यक हो। 


ग्रामीण विकास के लिए एक सुनियोजित कार्यक्रम एवं व्यवस्था पर विचार विमर्श करने के लिए भारत सरकार ने 1956 में योजना आयोग (जिसका स्थान अब नीति आयोग ने ले लिया है) द्वारा ‘सामुदायिक विकास कार्यक्रम’ और ‘राष्ट्रीय विस्तार सेवा कार्यक्रम’के अध्ययन के लिये ‘बलवंत राय मेहता समिति’ का गठन किया गया ने बलवंत राय मेहता की अध्यक्षता में एक 1956 समिति का गठन किया गया। बलवंत राय मेहता समिति ने अपनी संस्तुतियाँ1957 में सरकार को दे दी। 

पंचायती राज व्यवस्था सर्वप्रथम किस राज्य में लागू की गई? 


12 जनवरी 1958 को राष्ट्रीय विकास परिषद ने बलवंत राय मेहता समिति के प्रजातांत्रिक विकेंद्रीकरण के प्रस्तावों को स्वीकार करते हुए राज्यों से कार्यान्वित करने के लिए कहा। उसके बाद 2 अक्टूबर 1959 को भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा पंचायती राज का शुभारंभ राजस्थान के नागौर जिले में किया गया।
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पंचायती राज व्यवस्था को संवैधानिक मान्यता कब मिली?


वर्ष 1993 में संविधान के 73वें संशोधन को 24  अप्रैल 1993 को राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद मान्यता मिली और इसी संशोधन अधिनियम के द्वारा द्वारा पंचायती राज व्यवस्था को संवैधानिक मान्यता मिली थी।
अतः 24 अप्रैल को ‘राष्ट्रीय पंचायत दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।

 


पंचायती राज व्यवस्था लागू करने का उद्देश्य क्या था?  

 इसका उद्देश्य था देश की करीब ढाई लाख पंचायतों को अधिक अधिकार प्रदान कर उन्हें सशक्त बनाना और उम्मीद थी कि ग्राम पंचायतें स्थानीय ज़रुरतों के अनुसार योजनाएँ बनाएंगी और उन्हें लागू करेंगी।

 




पंचायती राज व्यवस्था कितने स्तरों पर होती हैं?

पंचायती राज व्यवस्था तीन स्तरों पर होती हैं। सबसे नीचे ग्राम पंचायत, उसके ऊपर पंचायत समिति और सबसे ऊपर जिला परिषद् होती है।
20 लाख की जनसंख्या से अधिक के सभी राज्यों में ग्राम, खण्ड एवं जिला स्तर पर पंचायतें बनाई जाती हैं।
तीनों स्तर की पंचायतों में पांच साल की अवधि पर चुनाव कराया जाएगा और पंचायत भंग होने पर छह महीने के अन्दर चुनाव कराया जाएगा।
ग्राम सभा को संवैधानिक दर्जा प्राप्त है।
महिलाओं के लिये एक तिहाई आरक्षण है और अनुसूचित जातियों के लिये आरक्षण जनसंख्या के अनुपात में है।
ग्राम पंचायत क्षेत्र के सभी मतदाता ग्राम सभा के सदस्य होते हैं

 ग्राम पंचायत का गठन

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ग्राम पंचायत में एक या एक से अधिक गाँव शामिल हो सकते हैं।
ग्राम पंचायत का प्रमुख (प्रमुख, सरपंच) ग्राम पंचायतके सभी मतदाताओं द्वारा प्रत्यक्ष रूप से बहुमत के आधार पर निर्वाचित किए जाते हैं।
ग्राम पंचायत के प्रतिनिधि प्रत्यक्ष रूप से मतदाताओं द्वारा बहुमत के आधार पर निर्वाचित होते हैं।
 लगभग पाँच सौ की आबादी पर एक प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र (वार्ड) का गठन होता है और प्रत्येक वार्ड से एक ग्राम पंचायत सदस्य निर्वाचित होता है।
सभी वार्ड सदस्य अपने बीच से ही एक उप प्रमख का बहुमत से चुनाव करते हैं। इस दौड़ में प्रमुख भी भाग लेते हैं।
मुखिया, उपमुखिया और सभी वार्ड सदस्यों को मिलाकर ग्राम पंचायत का गठन होता है।


ग्राम पंचायत की समितियों और उनके कार्य

1. नियोजन एवं विकास समिति

सदस्य: सभापति, प्रमुख, छह अन्य सदस्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, महिला एवं पिछड़े वर्ग का एक-एक सदस्य अनिवार्य है।

समिति के कार्य: ग्राम पंचायत की योजना का निर्माण करना, कृषि, पशुपालन और ग़रीबी उन्मूलन कार्यक्रमों का संचालन करना।

2. निर्माण कार्य समिति

सदस्य: सभापति ग्राम पंचायत द्वारा नामित सदस्य, छह अन्य सदस्य (आरक्षण ऊपर की ही तरह) 

समिति के कार्य: सभी निर्माण कार्य करना और गुणवत्ता निश्चित करना।

3. शिक्षा समिति

सदस्य: सभापति, उप-प्रमुख, छह अन्य सदस्य, (आरक्षण उपर्युक्त की भांति) प्रधानाध्यापक सहयोजित, अभिवाहक-सहयोजित करना।

समिति के कार्य: प्राथमिक शिक्षा, उच्च प्राथमिक शिक्षा, अनौपचारिक शिक्षा और साक्षरता आदि से संबंधित कार्यों को देखना।

4. प्रशासनिक समिति

सदस्य: सभापति-प्रधान, छह अन्य सदस्य आरक्षण (ऊपर की तरह)

समिति के कार्य: कमियों-खामियों को देखना।

5. स्वास्थ्य और कल्याण समिति

सदस्य: सभापति ग्राम पंचायत द्वारा नामित सदस्य, छह अन्य सदस्य (आरक्षण ऊपर की तरह)

समिति के कार्य: चिकित्सा स्वास्थ्य, परिवार कल्याण संबंधी कार्य और समाज कल्याण योजनाओं का संचालन, अनुसूचित जाति-जनजाति और पिछड़े वर्ग की उन्नति और संरक्षण।

6. जल प्रबंधन समिति

सदस्य: सभापति ग्राम पंचायत द्वारा नामित, छह अन्य सदस्य (आरक्षण ऊपर की तरह) प्रत्येक राजकीय नलकूप के प्रशांत क्षेत्र में से उपभोक्ता सहयोजित

समिति के कार्य: राजकीय नलकूपों का संचालन पेयजल सम्बन्धी कार्य देखना।

ग्राम पंचायत के कार्य

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  • कृषि संबंधी कार्य
  • ग्राम्य विकास संबंधी कार्य
  • प्राथमिक विद्यालय, उच्च प्राथमिक विद्यालय और अनौपचारिक शिक्षा के कार्य
  • युवा कल्याण संबंधित कार्य
  • राजकीय नलकूपों की मरम्मत व रखरखाव
  • चिकित्सा और स्वास्थ्य संबंधी कार्य
  • महिला एवं बाल विकास संबंधी कार्य
  • लिंग विकास संबंधी कार्य
  • सभी प्रकार की पेंशन को स्वीकृत करने और वितरण का कार्य
  • सभी प्रकार की छात्रवृति को स्वीकृति करने व वितरण का कार्य
  • राशन की दुकान का आवंटन व निरस्तीकरण
  • पंचायती राज सम्बंधी ग्राम पंचायती कार्य आदि।

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