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Friday, November 6, 2020

अहोई अष्टमी का व्रत क्यों किया जाता हैं? इसकी पूजा का विधान क्या हैं? अहोई अष्टमी कब मनाया जाता हैं? Why is Ahoi Ashtami fasting? What is the law of its worship? When is Ahoi Ashtami celebrated

 अहोई अष्टमी का व्रत क्यों किया जाता हैं? इसकी पूजा का विधान क्या हैं? अहोई अष्टमी कब मनाई जाती हैं? Why is Ahoi Ashtami fasting? What is the law of its worship? When is Ahoi Ashtami celebrated?

Why is Ahoi Ashtami fasting? What is the law of its worship? When is Ahoi Ashtami celebrated?



सुख की कामना और दुख की निवृत्ति के लिए शास्त्रों में पूजा-पाठ व्रत अनुष्ठान आदि उपायों का वर्णन है जो मनुष्य की इच्छाओं की पूर्ति में सहायक है।


अहोई अष्टमी का व्रत क्यों किया जाता हैं? 


संतान प्राप्ति संतान की दीर्घायु से लेकर संतान के अच्छे स्वास्थ्य के लिए अहोई अष्टमी के व्रत का विधान अनादि काल से चला आ रहा है। अहोई के रूप में माता पार्वती की पूजा की जाती है।

 आहोई का शाब्दिक अर्थ है अनहोनी को होनी में बदलना। इस दिन स्त्रियां निर्जल व्रत रहकर अपनी संतान की सुरक्षा की कामना करती हैं। होनी तो होकर रहती है उसे कोई टाल नहीं सकता। अनहोनी को होनी में बदलने का अभिप्राय है कि पूजा, पाठ, व्रत, उपवास की शक्ति से होनी से जुड़ी असुविधा को समाप्त किया जा सकता है या फिर असुविधा में कमी लाई जा सकती है। इसलिए संतान की कामना और संतान के जीवन मैं होने वाली किसी भी प्रकार की अनहोनी से बचने की प्रार्थना अहोई अष्टमी के दिन की जाती है।


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अहोई अष्टमी कब मनाई जाती हैं?


 कार्तिक मास में करवा चौथ के ठीक 4 दिन बाद कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को संतान की लंबी आयु और उसके जीवन में आने वाले सभी विघ्न बाधाओं से मुक्ति के लिए देवी अहोई का व्रत रखा जाता है। जिसे अहोई अष्टमी व्रत के नाम से जाना जाता है।

 कार्तिक मास में करवा चौथ के सामान ही अहोई अष्टमी भी एक महत्वपूर्ण पर्व हैं। करवा चौथ का व्रत जहां स्त्रियों द्वारा पति के दीर्घ जीवन की कामना हेतु किया जाता है वही अहोई अष्टमी का व्रत संतान की दीर्घायु और मंगल कामना के लिए किया जाता है।

 पद्मपुराण में कार्तिक मास की महिमा का वर्णन किया गया है। इस माह में आने वाले सभी व्रतों को करने का विशेष फल प्राप्त होता है। अहोई अष्टमी भी इसी मास में मनाए जाने वाला पर्व है जिसका महत्व अत्याधिक गुना बढ़ जाता है।


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पूजन विधि विधान

 व्रत का प्रारंभ प्रातः से स्नान और संकल्प के साथ होता है कलश के साथ करवा चौथ में  प्रयुक्त किए हुए करवे में जल भर लिया जाता है। गोबर से या चित्रांकन  के द्वारा कपड़े पर आठ कोष्टक की एक पुतली बनाई जाती है।पुतली के पास ही स्याऊ माता और उसके बच्चे की आकृतियां बनाई जाती हैं और सायंकाल या प्रदोष काल में उनकी पूजा की जाती है। उनके सामने चावल, मूली और सिंघाड़े या कोई और फल रखे जाते हैं। और जलते दिए के साथ कहानी कही जाती है। कहानी कहते समय जो चावल हाथ में लिए जाते हैं उन्हें साड़ी के दुपट्टे में बांध लेते हैं। सायं काल में माता की पूजा अपने परंपरागत तरीके से फूल, फल, मिठाई और पकवान का भोग लगाकर विधिवत रूप से करने के बाद आकाश में तारे दिखने पर तारों को करवें से जल अर्पित किया जाता हैं तब आपके व्रत का समापन होता हैं। करने के जल को दीपावली के दिन घर में छिड़का जाता है जिससे घर में सुख समृद्धि का निवास होता है।

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सौभाग्य प्राप्ति के लिए करें अति विशेष उपाय 

अहोई अष्टमी के दिन महिलाएं अगर अपनी राशि के अनुसार उपाय करती हैं तो शुभ फल में वृद्धि होती है:-

 इस दिन मेष राशि की महिलाएं मां पार्वती पर सिंदूर चढ़ाएं। 

वृष राशि की महिलाएं शिव पार्वती को सफेद चंदन अर्पित करें। 

मिथुन राशि की महिलाएं द्रव्य दक्षिणा मां पार्वती को अर्पित करे। 

कर्क राशि की महिलाएं फल का भोग माता के समक्ष लगाएं। 

सिंह राशि की महिलाएं शिव के मंत्र का 108 बार जप करें।

कन्या राशि की महिलाएं मां पार्वती को सफेद पुष्प की माला अर्पित करें।

 तुला राशि की महिलाएं मां पार्वती का श्रृंगार करें।

 वृश्चिक राशि की महिलाएं अन्य महिलाओं को कथा सुनाएं। 

धनु राशि की महिलाएं ओम नमः शिवाय का जप करें।

 मकर राशि की महिलाएं मां को घर में बने हुए पकवान का भोग लगाएं।

 कुंभ राशि की महिलाएं मां पार्वती के चरणों में आलता अर्पित करें। 

मीन राशि की महिलाएं मां पार्वती को सिंदूर लगाकर अपनी मांग में भरें।

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