Dilip Arya : जानिए उत्तर प्रदेश के एक छोटे से जिले फतेहपुर में मजदूरी करने वाला दिलीप आर्या 'बीहड़ का बागी मूवी' का हीरो कैसे बन गया?
दिलीप आर्या |
कभी-कभी ऐसा होता है कि हम जो सपना देखते हैं वह सच भी हो जाता है।चाहे हमारी वर्तमान स्थिति कैसी भी क्यों ना हो। ऐसी ही कुछ कहानी है उत्तर प्रदेश के जिला फतेहपुर के दिलीप कुमार की।
फर्श से अर्श तक जैसी कहानी का नायक है दिलीप कुमार। दिलीप कुमार हिंदी सिनेमा की महान सितारे दिलीप कुमार को अपना गुरु मानते हैं।उनके एकलव्य ने मुंबई आने के बाद अपना नाम बदलकर दिलीप आर्या कर लिया।
दिलीप आर्या के पिता राजमिस्त्री का काम करते थे। उनके गुजर जाने के बाद मां ने खेतों में मजदूरी करके तीन बेटे और तीन बेटियों को पाला।
दिलीप आर्या बताते हुए कहते हैं कि मुझे इस बात पर गर्व है कि हमारे परिवार के हर सदस्य ने मजदूरी की लेकिन अपने आत्मसम्मान पर कभी चोट नहीं आने दी। दिलीपआर्या ने भी मजदूरी की। तब उन्हें रोज के सात रूपए मिलते थे।और उनके बड़े भाई को 11 रूपए मिलते थे। तब दिलीप कुमार ने अपने बड़े भाई से ज्यादा पैसे कमाने का सोचा। उनसे ज्यादा कमाने के लिए दिलीप कुमार ने टेलरिंग सीखी और कमाने भी लगे।
फिर दिलीप कुमार ने सोचा कि पढ़ाई करने से पैसा ज्यादा आएगा और इज्जत भी मिलेगी।इस कारण वह काम के साथ पढ़ाई भी करने लगे।
दिलीप आर्या की लगन आपको चौंका सकती है। उन्होंने मजदूरी करते करते ही 12वीं तक की पढ़ाई पूरी कर डाली और फिर घरवालों के हौसला बढ़ाने पर ग्रेजुएशन भी कर डाला।आज की तारीख में वह जब गर्व से बताते हैं कि मैं अंग्रेजी साहित्य से M.A. हूं तो उनके चेहरे का तेज देखने लायक होता है।
छोटे भाई की मेहनत देखकर बड़े भाई का सीना खुशी से फूल गया।जब दिलीप कुमार ने दिल्ली में थिएटर ज्वाइन करने के लिए कहा तब उनके बड़े भाई ने खुशी-खुशी कहा कि जा तू अपने सपनों को पूरा कर मैं घर संभाल लूंगा।
दिलीप आर्या बताते हैं कि मैंने पढ़ रखा था कि एन एच डी में पढ़ाई करने वाले कई अभिनेता सिनेमा में बड़े स्टार बने हैं। इसलिए उन्होने भी वहां एडमिशन लेनेत्रकी कोशिश की लेकिन सफल नहीं हुए।उसके बाद वह लखनऊ पहुंच गए और भारतेंदु नाट्य अकादमी में प्रवेश प्राप्त किया। वहां 2 साल रहने के बाद वह पुणे पहुंच गये। इसके बाद वह मुंबई चले गए।
दिलीप आर्या को यह बताने में भी कोई संकोच नहीं होता है कि मुंबई में भी उन्होंने खूब पापड़ बेले हैं। वह बताते हैं कि मजदूरी करने की आदत होने की वजह से वह किसी तरह अपना खर्चा निकाल ही लेते थे। इस बीच उन्हें यह भी समझ में आया कि बड़ी-बड़ी कंपनियां जो उत्पाद बनाती है उनके बारे में लोगों को बताना भी एक पेशा है। इसलिए उन्होने कई कंपनियों की गाड़ियों के साथ घूमना शुरू कर दिया। यहां से उन्हें लाइव शो मिलने लगे। तमाम चैनलों में काम मिलना शुरू हो गया।
और फिर एक दिन निर्देशक नितिन श्रीवास्तव की उन पर नजर पड़ गई और मौका मिला कुख्यात डकैत ददुआ की जीवन पर बनी वेब सीरीज बीहड़ का बागी मे लीड रोल करने का।
दिलीप आर्या कहते हैं कि अभी तो वह बस मुंबई में सीधे खड़े हो पाने की ही जगह बना पाए हैं। वह कहते है कि अभी तो बहुत कुछ करना है। इससे लिए जितनी मेहनत करनी पड़े वह पीछे नहीं हटेंगे।
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