International Earth Day in Hindi:- अंतरराष्ट्रीय पृथ्वी दिवस कब मनाया जाता है ? पृथ्वी को सुरक्षित रखने के लिए कौन से उपाय किए जा सकते हैं?
" धरती बचाओ जीवन बचाओ"
कोरोना महामारी अपने साथ मानव जाति पर संकट लेकर आई है परंतु इसके साथ ही यह हम सभी लोगों को एक सबक भी सिखाती है। पिछले कई दशकों से चले आ रहे जलवायु संकट के बाद कोरोना महामारी ने धरती को संभालने का बड़ा मौका दिया है।
कई सालों से पारिस्थितिकी तंत्र को बचाने, गैस उत्सर्जन कम करने और संतुलित विकास की बड़ी-बड़ी बातें अधूरी ही रही हैं। यही कारण है कि प्रजातियां विलुप्त होने लगी, जंगलों में आग लगी, Glacier गिरने और बाढ़ तूफान जैसे प्रक्रियाएं होती रही।
धरती को संभालने के लिए अक्सर मानवीय गतिविधियों पर लगाम, प्राकृतिक संसाधनों के समुचित दोहन, ज्यादा से ज्यादा नवीनीकृत ऊर्जा के इस्तेमाल और सतत विकास की शैली पर जोर दिया जाता रहा है लेकिन इसका नतीजा कुछ भी नहीं रहता। आज 51 वे पृथ्वी दिवस पर हम सोचे कि धरती मां को बचाने के लिए कौन-कौन से जरूरी कदम उठाने की सख्त जरूरत है।
2002 मे सार्स, 2009 में स्वाइन फ्लू, 2013 में इबोला और 2019 में कोरोना इन सभी बीमारियों में एक समानता है कि इनके वायरस ने जानवरों से इंसानों पर हमला बोला है।इसका प्रमुख कारण इन जानवरों के साथ इंसानों का बढ़ता संपर्क रहा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इंसान के अतिक्रमण का ही नतीजे में 1980 के मुकाबले संक्रामक रोगों के प्रकोपों की दर 3 गुना बढ़ गई है।
पृथ्वी दिवस कब मनाया जाता है?
आज पृथ्वी दिवस (22 अप्रैल ) पर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन 40 देशों के नेताओं के साथ जलवायु परिवर्तन पर ऑनलाइन बैठक करेंगे।इसके काफी मायने हैं क्योंकि इससे पहले पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पेरिस समझौते से बाहर हो गए थे और जलवायु परिवर्तन में अमेरिका का नेतृत्व खत्म हो गया था ।अब बाइडन जलवायु परिवर्तन पर नेतृत्व करने की कोशिश कर रहे हैं। देखना होगा कि बाइडन अमेरिका के लिए क्या लक्ष्य तय कर पाते हैं साथ ही बाकी देशों के नेता क्या-क्या घोषणाएं करेंगे।
पृथ्वी दिवस के इस मौके पर हमें अपनी धरती को फिर से एक संजीवनी देने की जरूरत है। इसके लिए हमें निम्न उपाय करने आवश्यक हैं:-
कार्बन उत्सर्जन को रोकना
पिछले कई दशकों से धरती का स्वरूप बिगाड़ने में सबसे बड़ी भूमिका गैस उत्सर्जन की रही है। विश्व स्तर पर हर मंच से इसे कम करने की कोशिश की गई है लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकलता। कोई अपने आर्थिक हितों के आगे नहीं झुकना चाहता जिसके चलते धरती बर्बादी की ओर बढ़ रही है।
कोरोना काल में ऊबर रही विश्व की अर्थव्यवस्था के बाद तो कार्बन उत्सर्जन में तेजी से इजाफा हुआ है। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के मुताबिक तो इस साल खतरनाक स्तर पर पहुंच जाएगा। यही कारण है कि इस वक्त सबसे बड़ी जरूरत कार्बन उत्सर्जन को कम करने की है।
कोरोना महामारी के कारण पिछले साल वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन को लेकर कई छोटे-बड़े सम्मेलन बाधित हुए यही वजह है कि साल नवंबर में ग्लासगो में संयुक्त राष्ट्र क्लाइमेट चेंज कॉन्फ्रेंस आफ पार्टीज यानी cop के 26वें सत्र पर सबकी निगाहें रहेगी।यहाँ दुनिया के बड़े नेता जलवायु परिवर्तन पर योजना का खुलासा करेंगे। इस दौरान सहयोग और तात्कालिक कदमों की उम्मीद है। यह कॉन्फ्रेंस पेरिस समझौते के 6 साल बाद हो रही है। समझौते में सभी देशों को कार्बन उत्सर्जन घटाने के अपने लक्ष्य को पूरा करना था।
2050 तक शून्य कार्बन हासिल करने के लिए इस साल सभी देशों से जलवायु परिवर्तन पर उनकी कार्ययोजना को गति देने की उम्मीद है।
जैविक खेती को बढ़ावा देना
कृषि में पैदावार को बढ़ाने के लिए पेस्टिसाइड और सिंथेटिक फर्टिलाइजर का भरपूर उपयोग होता है जिसका खामियाजा भी हमें ही भुगतना पड़ता है। यह रसायन जमीन के पोषक तत्वों को तो खत्म कर देते हैं साथ ही धरती की जलवायु परिवर्तन सहने की क्षमता भी कम करते हैं इसलिए हमें जैविक खेती पर अपना ध्यान बढ़ाना चाहिए।
प्लास्टिक प्रदूषण कम करना
कोरोना काल में सुरक्षा उपकरणों से प्लास्टिक कचरा बढ़ा है। पीपीई, प्लास्टिक मास्क,दस्ताने दिन प्रतिदिन की जरूरत हो गए हैं लेकिन यह प्लास्टिक धरती और समुद्र को बुरी तरीके से प्रभावित कर रहे हैं और जिसका भुगतान हम लोगों को करना पड़ेगा। हमारे द्वारा प्रयोग किए गए प्लास्टिक अरबों की संख्या में समुद्र में पहुंच रहे हैं। हर साल समुद्र में फैल रहा प्लास्टिक 1 लाख कछुआ और अन्य जीवो को मार रहा है। यह जलवायु और अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित कर रहा है। प्लास्टिक पहले से ही बड़ी परेशानी थी और अब कोरोना काल ने इसे और बढ़ा दिया है। परंतु हमें फिर भी प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने का भरपूर प्रयास करते रहना चाहिए और यह सिर्फ प्रयास ही नहीं बल्कि यह एक परिणाम के रूप में भी हमारे सामने आना चाहिए।
अहम प्रजातियों को संकट से बाहर निकालना
पारिस्थितिक तंत्र को मजबूत करने के लिए आवश्यक है कि जो प्रजातियां संकट में है उन्हें बचाने का प्रयास किया जाए। उनके लिए ऐसा माहौल तैयार हो जिससे वह जीवन यापन कर सकें। कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के शोध के अनुसार समुद्रों के बढ़ते तापमान और अम्लीकरण के कारण मूंगा चट्टानों को ज्यादा नुकसान हो सकता है। इससे कई प्रजातियां दूसरे स्थानों पर पलायन कर सकती हैं तो कुछ खत्म भी हो सकती है। मूंगा चट्टाने इंसानों के लिए पारिस्थितिकी तंत्र मजबूत करती हैं और हमें सुरक्षा देती हैं।
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